गज़ल
अभी कल तक जो रिश्ते जताते थे मुझसे,
आज पूछूँ भी तो नज़रें वे चुरा लेते हैं।
सबसे जा जा के अपना दर्द क्या कहना,
यही सोच के आँखों में आँसू छिपा बैठे हैं।
सब नहीं हैं इस जहाँ में ऐसे यारों,
जो दौड़ के दुख दर्द बँटा लेते हैं।
मेरी नज़रों में निरा पत्थर भी भला उनसे,
जो लोग केवल खुद के लिए जीते हैं।
भूल तो सबसे हो ही जाती है मगर,
ठीक कर लें जो उन्हें, वे बुरे न होते हैं।
अभी कल तक जो रिश्ते जताते थे मुझसे,
आज पूछूँ भी तो नज़रें वे चुरा लेते हैं।
सबसे जा जा के अपना दर्द क्या कहना,
यही सोच के आँखों में आँसू छिपा बैठे हैं।
सब नहीं हैं इस जहाँ में ऐसे यारों,
जो दौड़ के दुख दर्द बँटा लेते हैं।
मेरी नज़रों में निरा पत्थर भी भला उनसे,
जो लोग केवल खुद के लिए जीते हैं।
भूल तो सबसे हो ही जाती है मगर,
ठीक कर लें जो उन्हें, वे बुरे न होते हैं।
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