Saturday, November 23, 2013

मन में जो है, कह लेने दो

मन में जो है, कह लेने दो
 
मन में जो है, कह लेने दो।

छ्न्दों के बन्धन में बँध कर,
शायद मैं कुछ
कह न पाऊँ।
जीवन के पथरीले पथ पर
निर्झर सा मैं बह न पाऊँ।
मन में जो कुछ उमड़ रहा है,
कागज़ पर भी लिख लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

जीवन में सब कुछ है लेकिन
मेरा मन है सदा अकेला।
प्रियतम से बातें करने को
कठिनाई से मिलती बेला।
व्यथा कथा आँसू बन बहती,
रोको मत, बह लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

Monday, November 4, 2013

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये

करें साफ़ दिन भर भले ही घरों को,
मुंडेरों पर लाखों दिये हम जलायें।
दिवाली असल में मनेगी तभी जब
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
राग द्वेष से ऊपर उठ
कर लें हम मन को निर्विकार।
इक दीप प्रेम का जले सतत
भागेगा सारा अन्धकार।
छ्लकेगी आभा स्वत: स्फ़ूर्त
जगमग होगा हर घर बाहर।
परिवर्तन होता है अन्दर,
परिलक्षित होता है बाहर।
रहेगी दिवाली सदा ही जगत में
सद्कर्म का दीप यदि हम जलायें।
दिवाली असल में मनेगी तभी जब
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।