गीत
गीत मेरे एकाकीपन के साथी हैं।
प्रियतम को जो लिखता हूँ, वह पाती हैं।
तपते मरुथल में छाया, शीतल पानी हैं।
मन के तारों को झंकृत करती बानी हैं।
हम जियें न जियें, ये गीत सदा ही जीते हैं।
जीवन की हर ऋतु में लब पर जीते हैं।
भरते हैं रण में ओज बहादुर वीरों में,
जन-जन का मन-रंजन, थिरकन पैरों में।
बिरही मन की पीड़ा, करुण कहानी हैं।
सुप्त प्राण को चेतन करती वाणी हैं।