बादल
गर्मी से बन कर भाप उड़े,
जल बिन्दु मिले और मेघ बने,
मस्त पवन के झोंकों के संग,
करते विचरण नील गगन में।
लगते कभी पर्वत शिखर,
या हाथियों के झुंड से,
चिंघाड़ उठते हैं कभी
लड़ कर परस्पर जोर से।
काले भूरे घन उमड़ घुमड़,
नभ मंडल पर छा जाते,
रह रह कर चमक-चमक चम-चम,
हैं दंत पंक्ति दिखलाते।
इतने में जल की फुहार
तन मन पुलकित कर जाती,
माटी की सोंधी सुगंध,
साँसों में बस सी जाती।
कभी कभी तो ये बादल
हैं जम कर खूब बरसते,
अम्बर में टँक से जाते हैं,
नहीं शीघ्र हैं छँटते।
और कभी ये बादल बिन
बरसे उड़ जाते हैं,
धरती की प्यास नहीं बुझती,
गर्मी से बन कर भाप उड़े,
जल बिन्दु मिले और मेघ बने,
मस्त पवन के झोंकों के संग,
करते विचरण नील गगन में।
लगते कभी पर्वत शिखर,
या हाथियों के झुंड से,
चिंघाड़ उठते हैं कभी
लड़ कर परस्पर जोर से।
काले भूरे घन उमड़ घुमड़,
नभ मंडल पर छा जाते,
रह रह कर चमक-चमक चम-चम,
हैं दंत पंक्ति दिखलाते।
इतने में जल की फुहार
तन मन पुलकित कर जाती,
माटी की सोंधी सुगंध,
साँसों में बस सी जाती।
कभी कभी तो ये बादल
हैं जम कर खूब बरसते,
अम्बर में टँक से जाते हैं,
नहीं शीघ्र हैं छँटते।
और कभी ये बादल बिन
बरसे उड़ जाते हैं,
धरती की प्यास नहीं बुझती,
ये आगे बढ़ जाते हैं।
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