Friday, June 27, 2014

प्रकृति सुन्दरी

प्रकृति सुन्दरी

प्रकृति सुन्दरी
आ गयी है,
सिन्धु में स्नान करके
नील नभ में केश खोले।

मस्त पुरवा
मगन हो कर
पालने में
है झुलाती।
ज्योति झरती
जब कभी ये
मुदित हो कर
खिलखिलाती।
बूँद गिरती
गेसुओं से
झटक कर
जब है सुखाती।
अट्टहासी
गर्जना कर
है दिशाओं
को डराती।

बरस जा
करुणामयी
प्यासी धरा यों
तृप्त होले।
प्रकृति सुन्दरी
आ गयी है,
सिन्धु में स्नान करके
नील नभ में केश खोले।