सुमन-साधना
भारत की प्यारी बगिया के,
हम हैं नन्हें-नन्हें फूल,
मुसकाते सदा, इठलाते सदा
अमराई हो या वन-बबूल।
काँटों में हमने जीना सीखा
हँस-हँस कर मुस्का कर,
हम नही जानते मुरझाना
हो चिर वसंत या फिर पतझर।
अवनि तल पर जन्म ले,
नित पवन के पा मृदु थपेड़े
रूप, रस औ’ गंध के,
अक्षय खुले भंडार मेरे।
तोड बालों में सजा,
कोई मुझे, शोभा बढ़ाता,
सूत में है गूँथ नित,
कोई मेरी माला बनाता।
देवशिर पर चढ़ कहीं,
मैंने कभी गौरव जो पाया,
हर्ष से उतने ही हमने,
शवों को भी गले लगाया।
स्वार्थ है ना मुझमें कुछ,
चिर साधना परमार्थ मेरी,
‘सु-मन’ मन की कल्पना,
नित कामना, उत्सर्ग मेरी।
श्रेष्ठता का रहे चिर इतिहास,
हम भले हों धूल,
भारत की प्यारी बगिया के,
हम हैं नन्हें-नन्हें फूल।
भारत की प्यारी बगिया के,
हम हैं नन्हें-नन्हें फूल,
मुसकाते सदा, इठलाते सदा
अमराई हो या वन-बबूल।
काँटों में हमने जीना सीखा
हँस-हँस कर मुस्का कर,
हम नही जानते मुरझाना
हो चिर वसंत या फिर पतझर।
अवनि तल पर जन्म ले,
नित पवन के पा मृदु थपेड़े
रूप, रस औ’ गंध के,
अक्षय खुले भंडार मेरे।
तोड बालों में सजा,
कोई मुझे, शोभा बढ़ाता,
सूत में है गूँथ नित,
कोई मेरी माला बनाता।
देवशिर पर चढ़ कहीं,
मैंने कभी गौरव जो पाया,
हर्ष से उतने ही हमने,
शवों को भी गले लगाया।
स्वार्थ है ना मुझमें कुछ,
चिर साधना परमार्थ मेरी,
‘सु-मन’ मन की कल्पना,
नित कामना, उत्सर्ग मेरी।
श्रेष्ठता का रहे चिर इतिहास,
हम भले हों धूल,
भारत की प्यारी बगिया के,
हम हैं नन्हें-नन्हें फूल।
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