Friday, February 8, 2013

वसंत

वसंत

आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।
नव पत्रों से सजी हुई है,
तरु की डाली डाली।

शीत ताप की नहीं अधिकता,
लगती ऋतु यह न्यारी।
अमराई में मलय गंध से,
महकी क्यारी क्यारी।
रंग बिरंगे पुष्प कहो,
किसके हित गंध लुटाते।
लदी हुई तरु की डाली,
किसको है शीश झुकाती।
डाल डाल पर कूक रही है,
कोयलिया मतवाली।
आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।

किसके हित कोमल कंठों से,
गाते गीत विहग हैं।
मधु के लोलुप भौंरे,
पुष्पों पर फिर आज मगन हैं।
शीतल मंद पवन बह रहा,
'नंदित धरा गगन हैं।
नयी चेतना दिग्दिगंत में,
जल में हँसे किरण हैं।
बाल-विहग संग खेल रहे हैं,
बजा बजा कर ताली।
आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।