Tuesday, August 26, 2014

कोई फिक्र नहीं

कोई फिक्र नहीं 

लाख मुश्किल हो सफ़र, कोई फ़िक्र नहीं।
सरपरस्ती में तेरी, कोई फ़िक्र नहीं।

बीते कल से सीख ले कर, हम सँवारें आज को,
आने वाला कल हो कैसा, कोई फ़िक्र नहीं।

हम ज़मीं के गर्भ में, नींव के पत्थर बनें,
दुनियाँ को न आयें नज़र, कोई फ़िक्र नहीं।

फ़िक्र हो बस फ़र्ज़ की, जिसके लिए पैदा हुए,
बाकी सब तेरी रज़ा है, कोई फ़िक्र नहीं।

पुरज़ोर इस्तेमाल करें, उसकी दी हर नेमत का,
पुरसुकूँ फिर नींद सो लें, कोई फ़िक्र नही।

Wednesday, August 6, 2014

लघु कविताएँ

लघु कविताएँ
 
कर सकें सब बसर,
इतना तो दे।
वरना ज़िन्दगी का बोझ न दे।
मौत दे दे
फाक़ाक़श को ऐ ख़ुदा,
मयस्सर रोटी नहीं
तो, रोग न दे।
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किसने देखा है,
क्या होता है,
फिर मौत के बाद,
हाँ,
ये ज़िन्दगी नहीं मिलती।
जी ले,
किसी के काम तो आ,
ख़ुदपरस्ती में,
ऐसी खुशी नहीं मिलती।
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संसार में हुआ
कोई भी सृजन
केवल सर्जक का नहीं होता।
सर्जक तो केवल निमित्त मात्र है।
वह होता है
सबका
सबके लिए।
ज्यों पंक्ति के अर्पित दिए।
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सम्बन्धों में
मिठास होनी चाहिए,
किन्तु इतनी भी नहीं
कि चींटे लग जाएँ।
रिश्तों में
ताज़गी और गर्मजोशी बनी रहे,
इसके लिए
कुछ फ़ासला ज़रूरी है।
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सांसारिक सम्बन्धों में
होने वाला तथाकथित प्रेम,
प्रेम नहीं होता।
कभी होता है
अल्पकालिक आकर्षण / मोह,
कभी समझौता।

Sunday, August 3, 2014

अहसास

अहसास

तेरा अहसास है, जो दिल को सुकूँ देता है।
तेरा यकीन ही, हर फ़िक्र को हर लेता है।

भटकता हूँ जब कभी दुनियाँ में दोराहे पर,
कोई है जो रस्ते में इक दीया जला देता है।

ढूँढ़ते हैं सब तुझे मंदिर में औ’ मस्ज़िद में,
मुझको मेरा हमसफ़र हर पल दिखाई देता है।

बिस्तर में सोया हुआ नन्हा सा इक बच्चा,
किसी से बात कर के हौले से हँस देता है।

घुमड़ने लगते हैं मन में जज़्बात के बादल,
कोई धीरे से हाथ में कलम थमा देता है।