Friday, January 25, 2013

ऐ देश के युवाओं

ऐ देश के युवाओं

ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।
अपने को एक करके,
स्‍वदेश को बचाओ।
कर्णधार हो तुम्‍हीं देश के,
तुम्‍हीं देश के माझी।
मझधार में है कश्‍ती,
कहीं आ न जाये आँधी।
डूबे कहीं न जाकर,
नेकी की ये नैया।
साहिल पे खींच लाना,
तुम ही रहे खिवैया।
मेरे वतन के प्‍यारों,
जागो तुम औ' जगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

माना बहुत कठिन हैं,
जीवन की ये राहें।
लेकिन कदम तुम्‍हारे,
हर्गिज़ न डगमगायें।
धैर्य को चुनौती,
ये कौन दे रहा है।
रोड़ा तुम्‍हारी राह में,
यह कैसा आ अड़ा है।
दुनियाँ की सारी बंदिश,
तुम तोड़ कर दिखाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

गोद में जिसकी खेल-खेल कर,
इतने बड़े हुए हो।
खाते हो अन्‍न तुम जिसका,
जल जिसका पीते हो।
उठो, सुनो, उस मातृभूमि की
करुणा भरी पुकार।
शीश दान कर दो तुम रण में,
यही वक्‍त की माँग।
गौरवमय इतिवृत्‍तों पर,
धब्‍बे न तुम लगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।
 
है कार्य कौन ऐसा,
जिसको न साध लो तुम।
मंज़िल है कौन ऐसी,
जिसको न पा सको तुम।
स्‍वदेश सेवा ही हो,
सच्‍चा धर्म तुम्‍हारा।
दीन रक्षा ही हो,
पुनीत कर्म प्‍यारा।
अपने हों या पराये,
सबको गले लगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

Thursday, January 17, 2013

गज़ल - मुझसे तुम्हारी दूरी

गज़ल

मुझसे तुम्हारी दूरी जितनी कम हो पायी है।

बस वही मेरी ज़िन्दगी की कमाई है।


क्या कमाया, खर्च किया, बचाया कितना,

तमाम उम्र इसी हिसाब में गँवाई है।


ज़रूरतों का इन्तज़ाम तो कर दिया था उसने,

ये कम्बख्त तबियत मगर, उसमें कब समाई है।


हसरतों की भीड़ में, चुक गयी उम्र तमाम,

याद कर के बता, कभी उसकी याद आई है।


कमाया यहीं से, यहीं पे सब छोड़ दिया,

दुनियाँ की दौलत कभी साथ न जा पाई है।

Tuesday, January 8, 2013

काशी

काशी

 

गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
वरुणा-अस्‍सी मध्‍य क्षेत्र यह
अविमुक्‍त, अविनाशी।
 
विद्या का यह केन्‍द्र पुरातन,
देता है नित नूतन ज्ञान।
इसकी गलियों में है बसता
इक छोटा सा हिन्‍दुस्‍तान।
धर्म जाति का भेद न कोई
यहाँ बसें हर भाषा भाषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
बैठ बुद्ध ने इसी नगर में
दिया विश्‍व को ज्ञान।
तुलसी, कबीर, रविदास की
कर्मभूमि यह रही महान।
महामना की बगिया अविरल
ज्ञान सुरभि फैलाती।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
इसका लंगड़ा खाये दुनियॉँ,
साड़ी हर नारी की शान।
खा कर पान बनारस वाला
बढ़ती है होठों की शान।
मस्‍त यहॉँ की जीवन शैली
लोग हास परिहासी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
'हर हर महादेव' का नारा
स्‍वागत सम्‍बोधन है इसका।
कंकर कंकर शंकर बसते,
भूखा यहॉँ कोई ना सोता।
पूर्ण हुए इस तपोभूमि में
जिज्ञासु, विद्वान, मनीषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।