Monday, December 31, 2012

नये साल की नयी सुबह

नये साल की नयी सुबह

नये साल की नयी सुबह
उत्‍साह नया ले आयी है,
मन में भरी उमंगें हैं,
दिल ने ली अँगड़ाई है।
 
बीता वर्ष दे गया हमको
यादें कुछ खट्‌टी मीठी,
ले गया साथ कुछ हँसते पल
चुभती है स्‍मृति फीकी।
 
गुज़र गया जो वक्‍त लौट फिर-
कहाँ कभी आता वह ?
साथ चला हो जो भी इसके
मंज़िल बस पासा वह।
 
हँसते गाते आओ हम सब
मिल कर कदम बढायें,
न्‍याय शांति औ ' समता का
जग में नित दीप जलायें।
 
रवि की नूतन किरणों ने
उर में नव आस जगायी है।
नये साल की नयी सुबह
उत्‍साह नया ले आयी है।

Friday, December 28, 2012

इंकलाब

इंकलाब

वतन में अब इंकलाब होते नहीं, क्यूँ,
दर्द की हद से गुज़रना क्या अभी बाकी है।

घुटन सीने में, आँखों में जलन, परेशान दिमाग,
इस सूरते हाल का बदलना क्यूँ अभी बाकी है।

वतन का पेट भरने वाले हैं तंगहाली में,
ख़ुदकुशी कितने किसानों की अभी बाकी है।

हम सभी बैठे हैं इन्तज़ार में किसी मसीहा के,
जगाना अंदर के मसीहा को अभी बाकी है।

कटते पेड़, गंदी नदियाँ, ज़हरीली हवा,
ज़िन्दगी में इनकी अहमियत क्या समझाना अभी बाकी है।

हौसला रख औ' किए जा यत्न सारे ,
मं
ज़िल का तेरे कदमों में आना अभी बाकी है।

Monday, December 17, 2012

कर्म

  कर्म

यह जग कर्म प्रधान।

कर्मवीर वसुधा को भोगे,
अकर्मण्य किस्मत को कोसे।
श्रम कर, व्यर्थ गवाँ न जीवन,
किस्मत लिख तू अपने कर से।
तुम बुद्धिमान, बलवान, विवेकी,
लक्ष्य करो अपना संधान।
यह जग कर्म प्रधान।

अपने-अपने कर्मों में रत
कुदरत के अवयव सारे,
सूर्य-ऊर्जा, धरा-अन्न,
जल-जीवन, श्वाँस-पवन दे।
तिनका-तिनका जोड़े पक्षी,
तब पाये विश्राम।
यह जग कर्म प्रधान।

शुभ कर्मों के बल पर जग में
राम-राज्य आ सकता है।
जन-जन का दुख हर, धरती को 
स्वर्ग बना सकता है।
बता गये कृष्ण गीता में
कर्म करो निष्काम।
यह जग कर्म प्रधान।

संचित कर्म फलित होते हैं,
भाग्य मनुज का बनता है।
सुख पाता संसार में आ,
या नित्य कष्ट सहता है।
कर्म बनाये मित्र-शत्रु
औ’ मिले मान-अपमान।
यह जग कर्म प्रधान।

जग से खाली हाथ चले जब,
कर्म साथ रहते हैं।
दुनियॉ वाले भले-बुरे
कर्मों को जाँचा करते हैं।
कर्म दिलाये स्वर्ग-नरक
औ’ कर्म मिलाये राम।
यह जग कर्म प्रधान।

Friday, December 14, 2012

अपनी सीमाओं को हमने

अपनी सीमाओं को हमने
 
अपनी सीमाओं को हमने

अपना हथियार बनाया है।
 
जग हँसा हमारी नियति देख,

कुछ देर कदम भी ठिठक गये,
फिर सोचा, समझा, बढ़े कदम,
कुछ दूर चले, फिर भटक गये।
अपनी नाकामी से भी हमने,
कुछ सीखा है, कुछ पाया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।
 
अपनी कमियों को समझा,

अपनी क्षमताओं को परखा,
फिर तय की अपनी मंजिल खुद,
दृढ़ता से कदम उधर रखा।
मंजिल फिर कैसे ना मिलती,
जब सिर पर प्रभु का साया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।
 
जग में है कोई पूर्ण नहीं,

सबकी अपनी सीमाएँ हैं,
फिर देख किसी की उपलब्धि
मन क्यों ललचाए, अकुलाए है।
रख नजर क्षितिज पर, जहाँ अभी तक 
कोई पहुँच ना पाया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।

Tuesday, December 11, 2012

मैं निडर हूँ

मैं निडर हूँ

मैं निडर हूँ, अब किसी भी बात से डरता नहीं हूँ।
 
ज़िन्दगानी के सफ़र में,
लाख रोड़े हों डगर में,
अब न कोई फ़र्क पड़ता,
सामने तू दीख पड़ता।
हों अँधेरे लाख बाहर, फिक्र मैं करता नहीं हूँ।
मैं निडर हूँ, अब किसी भी बात से डरता नहीं हूँ।
 
फूल की है चाह ना,
अब शूल की परवाह ना,
नाम तेरा, आस तेरी,
नाव औ' पतवार मेरी।
तू ही माझी, अब भॅँवर की चाल से डरता नहीं हूँ।
मैं निडर हूँ, अब किसी भी बात से डरता नहीं हूँ।
 
जब से तूने बाँह थामी,
बदली मेरी ज़िन्दगानी,
तेरी करुणा का भिखारी,
मौन का मैं हूँ पुजारी।
अब भ्रमर की भाँति मैं हर डाल पर फिरता नहीं हूँ।
मैं निडर हूँ, अब किसी भी बात से डरता नहीं हूँ।
 
भाव अर्पित, कर्म अर्पित,
कर रहा सब कुछ समर्पित,
अब संभालो नाथ मुझको,
बस तुम्हारी आस मुझको।
अब तुम्हारी राह से मैं चाहता डिगना नहीं हूँ।
मैं निडर हूँ, अब किसी भी बात से डरता नहीं हूँ।

Thursday, December 6, 2012

जब तक साँसें हैं

जब तक साँसें हैं

जब तक साँसें हैं सीने में,
जी लो।
जब तक मय है मीने में,
पी लो।

माना दुनियाँ में गम हैं ढेरों यारों,
धूप छाँव का खेल यहाँ चलता रहता है।
लाख घना हो अँधियारा रातों का,
सुबह का सूरज भी रोज निकलता है।
बाँटो मत अपने ग़म,
आँसू पी लो।
जब तक साँसें हैं सीने में,
जी लो।

जीवन के हर इक पल में खुशियाँ ढूँढ़ो,
दीन, दुखी, मज़लूमों से नाता जोड़ो।
आस बनो उनकी जो जीवन से हारे हैं,
दीप बनो उनका, जिनकी राहों में अँधियारे हैं।
दिखे जहाँ अन्याय, मुखर हो,
होंठ मत सी लो।
जब तक साँसें हैं सीने में,
जी लो।

नारायण का अंश जीव है, ध्यान रहे,
उसकी सेवा ही जीवन का ध्येय रहे।
प्राणी मात्र में प्रभु को देखो, यही भजन है।
है प्रमाद ही मृत्यु, जागरण जीवन है।
जब तक जीवन है,
राम नाम रस पी लो।
जब तक साँसें हैं सीने में,
जी लो।

अक्सर ही ऐसा होता है

अक्सर ही ऐसा होता है

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

दृष्टि हमारी सम्मुख देखे,

भीतर की कुछ थाह मिले ना,

हँसने और हँसाने वाला,

मन ही मन में क्यूँ रोता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

दिखता चेहरा एक सलोना,

बातें मधु औ’ मिश्री सी,

पर भीतर ही भीतर मन में

विष बेल बोता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


गम को भुलाने की खातिर

वो बैठा है मयखाने में,

मय उसको पीती है, मूरख

समझे मय को पीता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


जिनकी खातिर जीवन बीता

आज वही ना पहचाने हैं,

बच्चों को भरने में खुद का

जीवन रीता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


सीमित अपनी शक्ति,

समझ न पाये उस असीम को,

अपने अपने कर्मों का फल

सबको देता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

Sunday, December 2, 2012

बचपन

बचपन
 

बचपन के दिन,

हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।
माँ की गोदी,
थपकी, लोरी,
प्यारी, मीठी बातें।

बाबूजी वटवृक्ष

घना साया था
उनका।
उसके नीचे
पलते थे हम,
सुखी कुटुम्ब था अपना।
याद अभी भी है उनका
अनुशासन,
उनकी बातें।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।

संगी साथी,

दिन भर मस्ती,
खेल खिलौने मिट्टी के।
कैरम, लूडो,
लुका छिपी,
छत पर गुड्डी भाक्कटे।
बीच बीच में
भूख लगे तो
घर आ रोटी खाते।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।

तन मन चंचल,

ना कोई चिन्ता,
भोला भाला जीवन।
जाने कहाँ
लुप्त हो गया,
जब से आया यौवन।
अब तो छत पर
काटा करते,
तारे गिन गिन रातें।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।