Tuesday, February 24, 2015

मैं हूँ बेताब....

मैं हूँ बेताब....

मैं हूँ बेताब तुमसे मिलने को।
जाँ भी बेताब है निकलने को।

खत्म होता है अब सफ़र मेरा,
सूर्य भी जा रहा है ढलने को।

रात के बाद फिर सहर होगी,
मैं रहूँगा न आँख मलने को।

मैं चला, साथ मेरे कर्म चले,
कुछ न राज़ी है साथ चलने को।

माफ़ करना मेरी खताओं को,
मैं चला अपने रब से मिलने को।
                                   

Thursday, February 5, 2015

फगुनहट

फगुनहट


चली फगुनहट, धूल उड़ाती।

बीत गयी ऋतु कठिन शीत की,
वस्त्रों का कुछ भार घटा।
पेड़ों के पीले पात झड़े,
हरियाली की चहुँओर छटा।
भ्रमर गीत गुंजन सुन सुन
नव कलिका मुसकाती।
चली फगुनहट, धूल उड़ाती।

सीटी बजाती, खिलखिलाती,
खेलती है बाग वन।
ओढ़ चूनर पीत वर्णी,
बन गयी धरती दुल्हन।
होली के प्रेम पगे,
रंग बिखराती।
चली फगुनहट, धूल उड़ाती।

दिन में लगती भली,
रात में देती सिहरन।
रूखी सी, पपड़ाई,
माँगती है तेल, उबटन।
नूतन संवत्सर की
आहट दे जाती।

चली फगुनहट, धूल उड़ाती।