दोहे
धूप न निकली आज भी, गये कई दिन बीत।
सर्द हवा भीतर घुसे, छेद देह की भीत।
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सर्द हवाएँ तीर सी, बींध रहीं हैं देह।
सूरज की किरणें भली, बरसाती हैं नेह।
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अलसायी सी धूप है, सूरज है हैरान।
कोहरे के आतंक से, सहमी उसकी जान।