Wednesday, November 26, 2014

मैं कविता लिखता नहीं

मैं कविता लिखता नहीं 

मैं कविता लिखता नहीं,
वह लिखवा देता है।
उसकी प्रेरणा से
कभी कभी
मन करता है,
कागज़ कलम ले कर
बैठ जाने को।
मन में
बादलों की तरह
उमड़ने लगते हैं
भाव, विचार और अनुभूतियाँ।
कलम अपने आप
कागज़ पर
नाचने लगती है
और शब्द दर शब्द
पंक्ति दर पंक्ति
कागज़ पर उतर जाती है
एक सुलेखा कविता।

Sunday, November 9, 2014

भूला हूँ कब तुझे...

भूला हूँ कब तुझे...

भूला हूँ कब तुझे कि आज याद करूँ मैं।

सब कुछ दिया है तूने, क्या फ़रियाद करूँ मैं।

करना तो करम इतना कि इन्सान बनूँ मैं।

दुनिया की पीर हरने का सामान बनूँ मैं।

तुझ तक जो पहुँच पाये, वो पैगाम बनूँ मैं।

भाये तुझे जो ऐसा मधुर गान बनूँ मैं।

तपते हुए जहाँ में ठंडी छाँव बनूँ मैं।

सबको मिला दूँ तुझसे, वही नाव बनूँ मैं।

Monday, November 3, 2014

चंदा का दरबार

चंदा का दरबार


नीले नभ में सज गया,

चंदा का दरबार।


कुछ तारे बाराती लगते,


कुछ लगते पहरेदार।


कुछ तारे फ़रियादी भी हैं,

रोते अश्रु हज़ार।


धरती पर है हो रही


ओस बिन्दु बौछार।