गीत मैं तेरे ही गाऊँ
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
गीत तुमको ही सुनाऊँ।
प्राण में तुम ही बसे प्रिय,
छोड़ कर कित और जाऊँ।
हर जगह है वास तेरा,
हर तरफ आभास तेरा।
रुप, रस,लय,नाद में तुम,
यह जगत विस्तार तेरा।
भाव - पुष्पों की ये माला
आज मैं तुमको चढ़ाऊँ।
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
गीत तुमको ही सुनाऊँ।
प्राण में तुम ही बसे प्रिय,
छोड़ कर कित और जाऊँ।
हर जगह है वास तेरा,
हर तरफ आभास तेरा।
रुप, रस,लय,नाद में तुम,
यह जगत विस्तार तेरा।
भाव - पुष्पों की ये माला
आज मैं तुमको चढ़ाऊँ।
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
हो सफ़र में साथ तेरा,
मन में हो विश्वास तेरा,
मैं पथिक तेरी डगर का,
है मुझे अवलम्ब तेरा।
दीप तेरी आरती का
आज मैं मन में जलाऊँ।
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
सद्कर्म हों कर से सदा,
मन के कलुष का नाश हो,
समदृष्टि हो, समभाव हो,
बस प्रेम का प्रकाश हो।
तेरे स्वागत को रंगोली
आज मैं मन में सजाऊँ।
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।