Wednesday, June 20, 2012

यूं न उड़ाकर ले जाओ

यूं न उड़ाकर ले जाओ

हवाओं!
यूं न उड़ाकर ले जाओ
बादलों को मेरे शहर से।
मुद्दतों बाद ये फिर आज नजर आये हैं,
प्यासी धरती की आस बन के छाये हैं।
खेत मे किसान-
माथे पर हाथ रख;
देखता आसमान,
चिन्तित, किन्तु आशावान;
दीख पड़ता मेघ का कोई एक टुकडा,
दीप्त होती क्षीण आशा;
स्वप्न तिर जाते नयन में-
असंरव्य।
करता परिश्रम,
बहाता पसीना,
धीरे-धीरे अपने पंखों से इन्हें नीचे उतार
भर दो हर खेत,गली, कुन्ज, द्वार....
बरसा दो जीवन-
सपने हो सकें पूरे;
जन-जन के तन-मन को
पुलकित कर दो....
हवाओं!
यूं न उड़ाकर ले जाओ
बादलों को मेरे शहर से।

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