गज़ल
देखे हैं हमने ज़िन्दगी के रूप कई, अंदाज़ कई।
है हसीं ख्वाब कभी तो कभी इक जंग है ये।
किसी के लब पे तवस्सुम खिला कर देखो।
सुकून पाने का अपना तो अजब ढंग है ये।
सरे जहान ये लगता है कि मैं तनहा हूँ।
है न कुछ और, यादों का तेरी रंग है ये।
जहाँ में आ के न छोड़ कभी कश्ती-ए-उम्मीद।
यकीन कर, मिलेगी मंज़िल, गर संग है ये।
मौत आये भी तो गम नहीं है मुझको।
आखिर इस ज़िन्दगी का अंग है ये।
है हसीं ख्वाब कभी तो कभी इक जंग है ये।
किसी के लब पे तवस्सुम खिला कर देखो।
सुकून पाने का अपना तो अजब ढंग है ये।
सरे जहान ये लगता है कि मैं तनहा हूँ।
है न कुछ और, यादों का तेरी रंग है ये।
जहाँ में आ के न छोड़ कभी कश्ती-ए-उम्मीद।
यकीन कर, मिलेगी मंज़िल, गर संग है ये।
मौत आये भी तो गम नहीं है मुझको।
आखिर इस ज़िन्दगी का अंग है ये।
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