Wednesday, June 20, 2012

हिमालय

हिमालय

हे हिमनिधान!

नभ को छूता मस्तक तेरा
सिखलाता गौरव से जीना,
शीश न झुकने पाये कभी भी
आयें कितने आँधी तूफाँ।
पर हे गिरिराज तुझे है
इसका नहीं तनिक अभिमान।
हे हिमनिधान!

तन है तेरा अति कठोर,
पर मन से है तू अति उदार,
गंगा, यमुना, सतलज बन
बहती है तेरी अश्रुधार।
जग का है संताप देख
गल जाता तेरा मन महान।
हे हिमनिधान!

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