Friday, June 22, 2012

मौत

   मौत

अब न बाकी है कोई दर्द ज़माने वाला,
वक्त ये जाने कहाँ हमको ले आया है।
हर तरफ़ बिखरा है नूर तेरी रहमत का,
सुकूँ है, फ़िक्र का न कोई साया है।

याद कर-कर के मुझे रोना न ऐ दुनियॉँ वालों,
ज़िन्दगी की यही इक, बस यही सच्चाई है।
भटक रहा था यहॉँ मैं, न जाने कब से,
मेरे मालिक को मेरी आज याद आई है।

चंद लमहों के मुसाफ़िर थे, ये भूल गये,
दिल लगा बैठे, फ़र्ज़ अदा करते करते।
अब तो सोने दो सुकूँ से, न छेड़ो कोई,
थक गया ज़िन्दगी का कर्ज़ अदा करते करते।

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