Friday, June 22, 2012

नारी विमर्श

नारी विमर्श

जीना है तो लड़ना होगा।
बढ़ना है तो पढ़ना होगा।

कठिन है डगर,
राह मुश्किल मगर,
ठान ले तू अगर,
कुछ भी मुश्किल नहीं।
आस का दीप ले,
मन में विश्वास भर,
तू चलेगी तो सुखद,
जायेगी बन डगर।
धैर्य छूटे नहीं,
मन भी टूटे नहीं,
गिर भी जाये अगर
फिर संभलना होगा।
जीना है तो लड़ना होगा।
बढ़ना है तो पढ़ना होगा।


तुझसे ही है,
यह जग जन्मा,
पाया पहला पोषण
तेरी ममता की बूँदों से।
तेरी छाती से सट कर ही,
पहली धड़कन पाई,
प्रथम गुरु बन कर तूने ही,
जग को राह दिखाई।
जग को संबल देने वाली,
अबला कैसे हो सकती है।
इस विचार को तजना होगा,
प्रण कर आगे बढ़ना होगा।
जीना है तो लड़ना होगा।
बढ़ना है तो पढ़ना होगा।


तुझ पर अंकुश रख
आज़ादी की
बात सोचना बेमानी है।
तेरा हक हर, विकास की
पूरी नहीं कहानी है।
याची-दीन छवि को तेरी
देख भले जग मुसकाता है,
तेरी तनी भृकुटि से लेकिन
थर्राता-घबराता है।
जग है तेरा ऋणी,
तुझे क्या देगा।
जग को राह दिखानी है तो,
तुझको आगे आना होगा।
जीना है तो लड़ना होगा।
बढ़ना है तो पढ़ना होगा।

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