Tuesday, June 5, 2012

सावन

     सावन

आया आया आया।
आया सावन आया।

धूप की गर्मी हुई कुछ कम,
नभ में छाये मेघ अनुपम,
खेतों, बगियों, कुंजों में,
मोरों ने पंख फैलाया।

प्यासी धरती ने देखा नभ,
सपने अंकुर हो जागे,
आस पुजी, मन मुग्ध हो गया,
दादुर ने लो गीत सुनाया।
दर्द पपीहे का अब फूटा, प्रीति साम लहराया।

ठहर गयी प्यास सब,
चहक चंचल हो उठी।
बावलियाँ मत्त हुईं,
कानों में गोचर थी अनुगूँज लहरों की।
दूर कोई गाता था सावन, मन भाया।

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