शेर
ख्वाब बन के रह गयीं मेरे दिल की तमन्नाएँ,
इस जहाँ में ठोकरों के सिवा कुछ न रहा।
..........
क्यूँ अब ये दुनियाँ मुझसे वास्ता रखे,
इस जहाँ में मेरा बचा ही क्या है।
.........
सारा जग मुझसे आँख चुराता है क्यूँ,
शायद मतलब निकल गया है, इसलिए।
.........
तनहाई-ए-शब में जब दुनियाँ तमाम सोती है।
जागता हूँ मैं औ' ये आँख मेरी रोती है।
ख्वाब बन के रह गयीं मेरे दिल की तमन्नाएँ,
इस जहाँ में ठोकरों के सिवा कुछ न रहा।
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क्यूँ अब ये दुनियाँ मुझसे वास्ता रखे,
इस जहाँ में मेरा बचा ही क्या है।
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सारा जग मुझसे आँख चुराता है क्यूँ,
शायद मतलब निकल गया है, इसलिए।
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तनहाई-ए-शब में जब दुनियाँ तमाम सोती है।
जागता हूँ मैं औ' ये आँख मेरी रोती है।
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