Friday, June 22, 2012

मुक्तक

मुक्तक

ऐ दूर खड़े हो मंज़िल निहारने वाले,
मेहनत कर के देख वो तेरे कदम चूमेगी।
शोभा नहीं देता तुझे ऐसे बैठ रहना,
है जन्म हुआ तेरा, ये कर्म के लिए ही।

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खाई-ए-दुश्मनी भी पाट लेते हैं,
ये दुनियाँ वाले मतलब पे अक्सर।
धरमो-करम की तवज्जो है खाक से न ज़्यादा,
ईमां भी बेच लेते हैं ये मतलब पे अक्सर।

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न कार्य कोई है कठिन,
यदि ठान लेते हम उसे।
हाँ, अथक श्रम से है ना
हम साध लेते किसे।

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गम नहीं हैं कम यहाँ खुशियों से कहीं,
सब तरफ़ परेशानियाँ हैं तज़ुर्बा मेरा।
इन परेशानियों से जो घबराये, चुक गये,
है इनसे जूझना ही सही, तज़ुर्बा मेरा।

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दीप जले रे, दीप जले रे।
सबके घर आँगन में दीप जले रे।
सबके दामन में खुशियाँ फैलें,
शान्ति का चतुर्दिक दीप जले रे।

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हर एक ज़र्रे में बसी है याद तेरी,
भुलाना चाहूँ भी तो मैं तुमको भुला नहीं सकता।
कदम कदम पे याद तेरी आती है,
अश्क बहते हैं फिर खुद ही सूख जाते हैं।

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