Sunday, December 29, 2013

हर वक्त गुज़र जाता है

हर वक्त गुज़र जाता है

अच्छा बुरा,
जैसा भी है,
हर वक्त गुज़र जाता है।

रात हो
कितनी भी काली,
नव प्रभात आता है।
काट कर
तम की परत,
रवि मुस्कराता है।
दूर नभ में
विहग दल
पर आजमाता है।

कलियों की
पंखुड़ियों ने
सकुचा कर आँखें खोलीं।
गली गली में
गूँज उठी
बच्चों की मीठी बोली।
मन्द शीतल
पवन तन मन
को जगाता है।

आस्था की
स्वर लहरियाँ
कर्ण प्रिय रस घोलतीं।
कर्म पथ की
दीक्षा दे
मुक्ति पथ हैं खोलतीं।
मन्दिरों में
दीप नव
कोई जलाता है।

Friday, December 20, 2013

मृदु थाप दे कर...

मृदु थाप दे कर...

मृदु थाप दे कर कोई मन के द्वार आया।
फिर नयन के कोर भीगे, ज्वार आया।
उम्र भर मैने तकी थी राह जिसकी,
कल्पना में छवि बनी जिस बाँकपन की,
मेरे अधरों पर बसा था नाम जिसका,
और साँसें कर रहीं थीं आस जिसकी।
आज उसके प्रेम की वर्षा हुई तो
प्राण मन अभिसिक्त हो कर खिलखिलाया।
मृदु थाप दे कर कोई मन के द्वार आया।
फिर नयन के कोर भीगे, ज्वार आया।

Monday, December 16, 2013

युवा मन की अभिलाषा

युवा मन की अभिलाषा
 
पाँव हैं मेरे ज़मीं पर,
किन्तु नज़रें आसमाँ पर,
चाहता हूँ, तोड़ लाऊँ,
मैं सितारे इस धरा पर।

राह भूले तिमिर, झिलमिल,
रश्मियों की वीथियों में।
मन मुदित हो गीत गाये,
नृत्य में पग आप झूमें।

अपनी मेहनत से बनाते,
अपनी किस्मत की लकीरें।
रूक नहीं सकते कदम, हों
लाख ताकतवर जंजीरें।

हम पंछी उन्मुक्त गगन में,
उड़ते जाते हैं।
मन्ज़िल पाने को हम आगे,
बढ़ते जाते हैं।

अपनी नज़रों में न कोई
छोटा बड़ा, हैं सब बराबर।
चाह मेरी, मिले सबको
उन्नति के अवसर बराबर।    

Tuesday, December 10, 2013

नेताजी होशियार

नेताजी होशियार

राजा वह है जो जनता के
दिल पर राज करे।
उसके सुख दुख अपने समझे,
उसका काज करे।

आज बनी है सत्ता साधन
निज वैभव सन्चय का,
लूट कमाई जनता की
निज कोषों को भरने का।

अपना मत दे कर हम जिसको
अपना प्रतिनिधि चुनते हैं,
वह मदान्ध हो जाता है,
हम केवल राहें तकते हैं।

पाँच बरस की अवधि निज
हित साधन में चुक जाती है,
जागता है कुम्भकर्ण, फिर
जनता याद आती है।

अब कैसे लड़ें चुनाव,
कैसे हो बेड़ा पार,
जनता को बाँटो, खड़ी करो
जाति, धर्म की दीवार।

रेवड़ी बाँटो कुछ को,
कुछ को कोरा आश्वासन,
भयभीत करो जनता को
ताकि, पुनः मिले शासन।

विकृत होती जाती है,
सोच, समझ नेताओं की,
सत्ता को जागीर समझते
अपने अपने बाऊ की।

ज्यादा दिन ना चलने वाला
है अब यह व्यापार।
जनता जाग रही है, रहना
नेताजी होशियार।

Sunday, December 8, 2013

मैं सफ़र में हूँ

मैं सफ़र में हूँ
 
मैं सफ़र में हूँ
अभी हारा नहीं हूँ।

राह कठिन है, मन्ज़िल दूर,
चलते जाना है मन्ज़ूर,
जलता दीपक, बिखरा नूर,
मत समझो मुझको मजबूर।
ज्ञात है मन्ज़िल
मैं बन्जारा नहीं हूँ।
मैं सफ़र में हूँ
अभी हारा नहीं हूँ।

जीवन है चलने का नाम,
साँसें करतीं कब विश्राम,
कर्म पथ पर हौसला रख,
बढ़ते जाना मेरा काम।
जल रहा बन दीप
अँधियारा नहीं हूँ।
मैं सफ़र में हूँ
अभी हारा नहीं हूँ।

मिलेगी जय या पराजय,
इस पर ना मेरा अधिकार,
मन के जीते जीत है,
मन के हारे हार।
हूँ थका लेकिन
मैं बेचारा नहीं हूँ।
मैं सफ़र में हूँ
अभी हारा नहीं हूँ।

Saturday, November 23, 2013

मन में जो है, कह लेने दो

मन में जो है, कह लेने दो
 
मन में जो है, कह लेने दो।

छ्न्दों के बन्धन में बँध कर,
शायद मैं कुछ
कह न पाऊँ।
जीवन के पथरीले पथ पर
निर्झर सा मैं बह न पाऊँ।
मन में जो कुछ उमड़ रहा है,
कागज़ पर भी लिख लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

जीवन में सब कुछ है लेकिन
मेरा मन है सदा अकेला।
प्रियतम से बातें करने को
कठिनाई से मिलती बेला।
व्यथा कथा आँसू बन बहती,
रोको मत, बह लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

Monday, November 4, 2013

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये

करें साफ़ दिन भर भले ही घरों को,
मुंडेरों पर लाखों दिये हम जलायें।
दिवाली असल में मनेगी तभी जब
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
राग द्वेष से ऊपर उठ
कर लें हम मन को निर्विकार।
इक दीप प्रेम का जले सतत
भागेगा सारा अन्धकार।
छ्लकेगी आभा स्वत: स्फ़ूर्त
जगमग होगा हर घर बाहर।
परिवर्तन होता है अन्दर,
परिलक्षित होता है बाहर।
रहेगी दिवाली सदा ही जगत में
सद्कर्म का दीप यदि हम जलायें।
दिवाली असल में मनेगी तभी जब
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।

Thursday, October 3, 2013

गीत मैं तेरे ही गाऊँ

गीत मैं तेरे ही गाऊँ
 
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।
गीत तुमको ही सुनाऊँ।
प्राण में तुम ही बसे प्रिय,
छोड़ कर कित और जाऊँ।

हर जगह है वास तेरा,
हर तरफ आभास तेरा।
रुप, रस,लय,नाद में तुम,
यह जगत विस्तार तेरा।
भाव - पुष्पों की ये माला
आज मैं तुमको चढ़ाऊँ।

 गीत मैं तेरे ही गाऊँ।

हो सफ़र में साथ तेरा,
मन में हो विश्वास तेरा,
मैं पथिक तेरी डगर का,
है मुझे अवलम्ब तेरा।
दीप तेरी आरती का
आज मैं मन में जलाऊँ।
 
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।

सद्कर्म हों कर से सदा,
मन के कलुष का नाश हो,
समदृष्टि हो, समभाव हो,
बस प्रेम का प्रकाश हो।
तेरे स्वागत को रंगोली
आज मैं मन में सजाऊँ।
 
गीत मैं तेरे ही गाऊँ।

Sunday, September 8, 2013

वंदना

वंदना 

हे गणपति तुमको नमन,
सदा रहो अनुकूल।
विद्या, बुद्धि, विवेक दो,
क्षमा करो सब भूल।

हे माँ तेरे चरणों में,
अटल रहे विश्वास।
सारी भव बाधा हरे,
पूरी हो हर आस।

राम तुम्हारे नाम का,
सदा करूँ मैं गान।
मेरे हृदय विराजिए,
संग सिया, लखन, हनुमान।

पाप, ताप हरते सदा,
नीलकंठ भगवान।
उमा सहित तव चरण में,
बारम्बार प्रणाम।

जीवन का आधार हो,
दिनकर तुम्हें प्रणाम।
अन्तर्तम का नाश हो,
ऐसा दो वरदान।

Wednesday, August 28, 2013

मेरी जीवन नैया...

मेरी जीवन नैया...
 
मेरी जीवन नैया,
अब तेरे हाथ कन्हैया।
हो तुम्हीं नाव, पतवार तुम्हीं हो,
तुम ही मेरे खिवैया।

हो धार तुम्हीं, उस पार तुम्हीं,
इस जीवन का आधार तुम्हीं,
इक नाम तुम्हारा है सम्बल,
इक आस तुम्हारी है केवल।
ढूँढ़े तुझको जग जंगल में,
भूली बिसरी तेरी गैया।
मेरी जीवन नैया,
अब तेरे हाथ कन्हैया।

जन्म लिया तुमने इस जग में
जब जब घिरा अँधेरा।
पाप ताप में हुई वृद्धि औ'
लोभ मोह ने घेरा।
लो अवतार आज जन मन में,
करते ता ता थैया।
मेरी जीवन नैया,
अब तेरे हाथ कन्हैया।

Sunday, June 30, 2013

गुज़र गया सैलाब

गुज़र गया सैलाब

गुज़र गया सैलाब छोड़ कर
दर्द भरे अफ़साने।
चारों ओर बिछी लाशों में
कौन किसे पहचाने।

क्यों कुपित हुए केदार,
पर्वत क्यों इतना रूठा,
अकस्मात् फट पड़े मेघ,
नदियों का गुस्सा फूटा।

टूटी किसी वृद्ध की लाठी,
बिछु
गया आँखों का तारा।
कितने ही बच्चों के सिर से
छिन गया माँ बाप का सहारा।

जो जीवित हैं, उनके कितने
अपनों का कुछ पता नहीं।
बाट जोहतीं, सूनी आँखें,
अब तो आस भी टूट रही।

डूब गयी बस्ती की बस्ती,
उज
गये घर गाँव,
कैसे काटें ज़िन्दगी,
कहाँ मिलेगी ठाँव।

भूखे, नंगे, भीग रहे हैं,
नीले नभ के नीचे।
अब तो केवल आस प्रभु की
जीवन नैया खींचे।

ऐसे में कुछ तो अपनी भी
ज़िम्मेदारी बनती है।
भोजन, वस्त्र, दवा, द्रव्य की
वहाँ ज़रूरत महती है।

तन, मन, धन से, जो संभव हो,
आगे बढ़ कर मदद करें।
यही धर्म, कर्तव्य यही है,
जीव मात्र पर दया करें।

Thursday, June 20, 2013

कुदरत

कुदरत

कुदरत के आगे हम बौने
मिट्टी के खेल खिलौने हैं।
 
हम बाँध रहे हैं नदियों को
हम साध रहे है पर्वत को
निज क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति हेतु 
नित काट रहे हैं वृक्षों को।

हम विकास का नारा दे
कुदरत का दोहन करते हैं।
जिस पंचभूत के बने हुए
उसका ही शोषण करते है।

हम समझ न पाते कुदरत है
उस परम पिता का दिव्य रूप।
इसकी गोदी में ही मिलती
है दिव्य शांति और सुख अनूप।

हम साथ जिएँ, ना नष्ट करें,
समझें कुदरत की भाषा।
परिवर्तित करनी होगी हमको
उन्नति की परि
भाषा

यह कुदरत हमको देती है
हमसे कुछ भी ना लेती है।
पर कभी - कभी यह शोषण का
प्रतिकार तनिक कर देती है।

इसकी हलकी सी करवट भी
लगती हमको सूनामी है।
तब होता अहसास हमें
हम छोटे से मृग छौने हैं।

कुदरत के आगे हम बौने
मिट्टी के खेल खिलौने हैं।

Monday, May 13, 2013

सिंधु लहरें

सिंधु लहरें
 
क्यूँ विकल हैं,
सिंधु लहरें,
खोज में,
अपने किनारों की।

नीली नीली,
वेगवती,
लहरें उठतीं गिरतीं,
उन्मादग्रस्त हो
दौड़ लगातीं,
तट की ओर।
करतीं विलास,
उन्मुक्त हास,
गुंजायमान
चहुँ ओर।

दूर कर
सब विकार,
हो जातीं
श्वेत फेनिल,
चरण धोकर
समा जातीं
हैं किनारों में।

संसार सागर की
लहर हम,
काश! हम भी
खोज पाते,
अपने किनारे को,
मिल पाता
विश्राम। 

Wednesday, May 8, 2013

अच्छा है

अच्छा है
 
जीवन में कुछ तकलीफ़ें हैं, अच्छा है।
याद तुम्हारी बनी हुई है, अच्छा है।

कल का सुनहरा ख़्वाब सजाना, अच्छा
है
पूरा हो कोई
ख़्वाब पुराना, अच्छा है।

बीती कड़वी बात भुलाना, अच्छा है।
प्रेम भाव से समय बिताना, अच्छा है।

छत पर उसका आना जाना, अच्छा है।
बचपन का वो यार पुराना, अच्छा है।

बूढ़ों की लाठी बन जाना, अच्छा है।
बच्चों को सद्मार्ग दिखाना, अच्छा है।

हरे भरे कुछ पेड़ लगाना, अच्छा है।
नदियों को कूड़े से बचाना, अच्छा है।

शुद्ध हवा यदि मिल पाये तो, अच्छा है।
दीपक से दीपक जल जाये, अच्छा है।

भूखे को रोटी मिल जाये, अच्छा है।
प्यासे को पानी मिल जाये, अच्छा है।

नंगे को कुछ वस्त्र मिलें तो, अच्छा है।
बेघर को इक छत मिल जाये, अच्छा है।

जीवन पथ में चलते जाना, अच्छा है।
प्रभु का चिन्तन करते जाना, अच्छा है।

Thursday, May 2, 2013

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी 

कभी सौतन, कभी सहेली है।

 ज़िन्दगी एक पहेली है।

है काँटों की सेज कभी,
कभी फूलों का गुलदस्ता है।
आँसू से भीगी डगर कभी,
कभी मुस्कानों का बस्ता है।
कभी उबाऊ लगती है,
कभी दुल्हन नयी नवेली है।
कभी सौतन, कभी सहेली है।

 ज़िन्दगी एक पहेली है।

कभी महलों की ये रानी है,
कभी दुर्दिन, करूण कहानी है।
हैं इसके रंग और रूप कई,
कभी ठहरी, कभी रवानी है।
नित नये कलेवर बदलने वाली,
यह जीवन ऋतु अलबेली है।
कभी सौतन, कभी सहेली है।

 ज़िन्दगी एक पहेली है।

Sunday, April 21, 2013

चाँद

चाँद

साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।
दूर खड़े
तरु के शिखरों पर
लगा चाँदनी चमकी।

धीरे धीरे पेड़ों के
पीछे से उठा चाँद,
धरती के आँगन में फैला
मद्धिम पीत प्रकाश;
ज्योति किरणों
में धरा
स्नान करती।
साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।

किस प्रेमी की छवि है तेरे
मन पर अंकित,
इस निस्तब्ध निशा बेला में
किसे खोजता तू विचलित;
देख तुझे
उमड़ा करतीं
लहरें सागर की।
साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।

Friday, February 8, 2013

वसंत

वसंत

आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।
नव पत्रों से सजी हुई है,
तरु की डाली डाली।

शीत ताप की नहीं अधिकता,
लगती ऋतु यह न्यारी।
अमराई में मलय गंध से,
महकी क्यारी क्यारी।
रंग बिरंगे पुष्प कहो,
किसके हित गंध लुटाते।
लदी हुई तरु की डाली,
किसको है शीश झुकाती।
डाल डाल पर कूक रही है,
कोयलिया मतवाली।
आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।

किसके हित कोमल कंठों से,
गाते गीत विहग हैं।
मधु के लोलुप भौंरे,
पुष्पों पर फिर आज मगन हैं।
शीतल मंद पवन बह रहा,
'नंदित धरा गगन हैं।
नयी चेतना दिग्दिगंत में,
जल में हँसे किरण हैं।
बाल-विहग संग खेल रहे हैं,
बजा बजा कर ताली।
आया है ऋतुराज वसंत,
फैल गयी हरियाली।

Friday, January 25, 2013

ऐ देश के युवाओं

ऐ देश के युवाओं

ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।
अपने को एक करके,
स्‍वदेश को बचाओ।
कर्णधार हो तुम्‍हीं देश के,
तुम्‍हीं देश के माझी।
मझधार में है कश्‍ती,
कहीं आ न जाये आँधी।
डूबे कहीं न जाकर,
नेकी की ये नैया।
साहिल पे खींच लाना,
तुम ही रहे खिवैया।
मेरे वतन के प्‍यारों,
जागो तुम औ' जगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

माना बहुत कठिन हैं,
जीवन की ये राहें।
लेकिन कदम तुम्‍हारे,
हर्गिज़ न डगमगायें।
धैर्य को चुनौती,
ये कौन दे रहा है।
रोड़ा तुम्‍हारी राह में,
यह कैसा आ अड़ा है।
दुनियाँ की सारी बंदिश,
तुम तोड़ कर दिखाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

गोद में जिसकी खेल-खेल कर,
इतने बड़े हुए हो।
खाते हो अन्‍न तुम जिसका,
जल जिसका पीते हो।
उठो, सुनो, उस मातृभूमि की
करुणा भरी पुकार।
शीश दान कर दो तुम रण में,
यही वक्‍त की माँग।
गौरवमय इतिवृत्‍तों पर,
धब्‍बे न तुम लगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।
 
है कार्य कौन ऐसा,
जिसको न साध लो तुम।
मंज़िल है कौन ऐसी,
जिसको न पा सको तुम।
स्‍वदेश सेवा ही हो,
सच्‍चा धर्म तुम्‍हारा।
दीन रक्षा ही हो,
पुनीत कर्म प्‍यारा।
अपने हों या पराये,
सबको गले लगाओ।
ऐ देश के युवाओं,
आगे कदम बढ़ाओ।

Thursday, January 17, 2013

गज़ल - मुझसे तुम्हारी दूरी

गज़ल

मुझसे तुम्हारी दूरी जितनी कम हो पायी है।

बस वही मेरी ज़िन्दगी की कमाई है।


क्या कमाया, खर्च किया, बचाया कितना,

तमाम उम्र इसी हिसाब में गँवाई है।


ज़रूरतों का इन्तज़ाम तो कर दिया था उसने,

ये कम्बख्त तबियत मगर, उसमें कब समाई है।


हसरतों की भीड़ में, चुक गयी उम्र तमाम,

याद कर के बता, कभी उसकी याद आई है।


कमाया यहीं से, यहीं पे सब छोड़ दिया,

दुनियाँ की दौलत कभी साथ न जा पाई है।

Tuesday, January 8, 2013

काशी

काशी

 

गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
वरुणा-अस्‍सी मध्‍य क्षेत्र यह
अविमुक्‍त, अविनाशी।
 
विद्या का यह केन्‍द्र पुरातन,
देता है नित नूतन ज्ञान।
इसकी गलियों में है बसता
इक छोटा सा हिन्‍दुस्‍तान।
धर्म जाति का भेद न कोई
यहाँ बसें हर भाषा भाषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
बैठ बुद्ध ने इसी नगर में
दिया विश्‍व को ज्ञान।
तुलसी, कबीर, रविदास की
कर्मभूमि यह रही महान।
महामना की बगिया अविरल
ज्ञान सुरभि फैलाती।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
इसका लंगड़ा खाये दुनियॉँ,
साड़ी हर नारी की शान।
खा कर पान बनारस वाला
बढ़ती है होठों की शान।
मस्‍त यहॉँ की जीवन शैली
लोग हास परिहासी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
 
'हर हर महादेव' का नारा
स्‍वागत सम्‍बोधन है इसका।
कंकर कंकर शंकर बसते,
भूखा यहॉँ कोई ना सोता।
पूर्ण हुए इस तपोभूमि में
जिज्ञासु, विद्वान, मनीषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।