Tuesday, November 27, 2012

सुबहे बनारस

सुबहे बनारस

गंग की तरंग में उमंग भंग का भरा।
उठत, गिरत, बढ़त, थमत नाचती ज्यों अप्सरा।

भोर समय लहरों संग किरण रवि की खेलतीं।
लाल गेंद समझ जल में सूरज को हेरतीं।

सैलानियों को भर के नाव, लहरों पर तैरती।
चिड़ियों की पंख ध्वनि सन्नाटा चीरती।

धार बीच, जाल डाल, माझी गीत गाता है।
मंद शीतल पवन छुवन, तन मन पुलकाता है।

गंगा के घाटों पर हो रहा नहान है।
सुबहे बनारस की छटा नयनाभिराम है।

Friday, November 23, 2012

चरणामृत

चरणामृत
 
 श्री हरि के चरणों का अमृत,
गंगा केवल नदी नहीं है।
सदियों से बहती संस्कृति है,
केवल जलधार नहीं है।

सुनो कहानी आज,
गंगा के उद्भव की।
किंचित विस्मृत कर बैठे हम,
कथा वामन प्रभु की।

बाल रूप धर वामन प्रभु
पहुँचे राजा बलि के द्वार।
याचक विप्र समझ राजा ने
किया अतिथि सत्कार।

बोला प्रभु से, ‘बाल विप्र
क्या है तेरी अभिलाषा।
माँगो तज संकोच सब
दान मिलेगा मुँह माँगा।’

भूमि तीन पग माँगी प्रभु ने
राजा मन में मुसकाया।
छोटे-छोटे पैर तुम्हारे
इतने में क्या हेतु सधेगा।

हठ कर बैठे बाल रूप प्रभु
मुझे चाहिए इतना ही।
समझ न पाया प्रभु की इच्छा,
राजा ने हामी भर दी।

स्वीकृति पा राजा की प्रभु ने
देह धरा अत्यन्त विशाल।
पहले पग में नापी धरती
दूजे में सुरलोक विशाल।
 
 कदम तीसरा रखने को
कुछ भूमि बची न रिक्त।
मस्तक प्रस्तुत कर अपना
बलि ने पायी मुक्ति।

देव लोक में ब्रह्मा हरि की
लीला देख रहे थे।
प्रभु पद प्रक्षालन करने को
हर क्षण तैयार खड़े थे।

कदम दूसरा जैसे ही
हरि का पड़ा स्वर्ग लोक में।
पद पंकज प्रक्षालन कर, जल
संचित कर लिया कमंडल में।

बीते काल, भगीरथ ने
तप कर, ब्रह्मा से वर पाया।
हरि चरणामृत की धार वही
धरती पर ले आया।

उस प्रबल वेगवती धारा को
शिव ने जटाओं से मार्ग दिया।
बहती है तब से धरती पर,
जाने कितनों का उद्धार किया।

पर आज वही गंगा माँ,
हमसे कुछ कहती है।
बाँध दिया है हमने उसको,
मंद धार बहती है।

बहा रहे हम इसमें मल जल,
कूड़ा-कर्कट, मुर्दे, राख।
उद्योगों के बहें रसायन,
कपड़े धुलते धोबी घाट।

किसी कथा पूजा में जब हम
चरणामृत पाते हैं।
हाथ पसार ग्रहण करते,
सिर माथ चढ़ा लेते हैं।

कैसी दोहरी सोच समझ यह
कैसा है व्यवहार।
जीवन देने वाली माँ संग
ऐसा अत्याचार।

ध्यान रहे, यदि इस धरती पर
गंगा नहीं रहेगी।
जन जीवन नहीं बचेगा,
धर्म संस्कृति नहीं रहेगी।

गंगा माँ की खातिर हमको
पुनः भगीरथ बनना होगा।
गंदा न करें, न करने दें,
ऐसा प्रण करना होगा।

गंगा मइया माफ़ करें,
हम बुद्धिहीन, मतिमूढ़।
डाल वही हैं काटते,
जिस पर हैं आरूढ़।

हे पाप नाशिनी गंगा माँ,
दो जन को सुविचार।
विचलित औ' शर्मिन्दा हूँ,
मैं तेरी दशा निहार।

Tuesday, November 20, 2012

हे वीर सैनिकों तुम्हें नमन

हे वीर सैनिकों तुम्हें नमन

धरती पर और अम्बर में,
पर्वत पर और समन्दर में,
हो डटे राष्ट्र की रक्षा में,
हे वीर सैनिकों तुम्हें नमन।

दिवस हो कि रात हो
हिम, शीत, झंझावात हो,
रेत का गुबार हो,
वर्षा की मार हो,
कदम कभी डिगे नहीं,
नजर कभी हटे नहीं,
सरहदें बची रहें,
हम रहें कि ना रहें,
ऐसे अविचल, दृढ़ प्रतिज्ञ
सीमा के वीरों तुम्हें नमन।
हे वीर सैनिकों तुम्हें नमन।

जाने कितनी ऋतुएँ बीतीं,
बीत गये तीज त्योहार,
माँ, बाबू और बीबी बच्चे,
रस्ता देख रहे घर द्वार।
सबसे च्युत, कर्तव्य मार्ग पर
चलते तुम अविकल, अविराम,
हो निश्चिन्त तुम्हारे दम पर
कर पाते हैं हम विश्राम।
है कृतज्ञ यह राष्ट्र तुम्हारा
करता शत कोटि नमन।
हे वीर सैनिकों तुम्हें नमन।

Sunday, November 18, 2012

सागर

सागर
 

रेतीले तट पर खड़ा हुआ,
मैं हतप्रभ सम्मुख देख रहा।
है दृष्टि जहाँ तक जाती दिखता,
नीली लहरों का राज वहाँ।

उस पार उमड़ती लहरों का
आलिंगन करता नभ झुक झुक कर।
रवि बना साक्षी देख रहा
करता किरणों को न्योछावर।

सागर की गहराई कितनी,
कितने मोती, माणिक, जलचर
कितनी लहरें बनती, मिटतीं,
बेला से टकरा टकरा कर।

लहरों की गोदी में खेलें,
नौकाएँ मछुआरों की।
आती जाती लहरें तट का
पद प्रक्षालन कर जातीं।

Saturday, November 10, 2012

दीवाली

दीवाली

जग मना रहा दीवाली।

सजी हुई है हर घर के
आँगन में दीपों की लडि़याँ।
बच्चों के इक हाथ मिठाई
औ’ दूजे में फूलझडि़याँ।
श्री-गणेश की अगवानी को
है सजी हुई पूजा की थाली।
जग मना रहा दीवाली।

छाया चारों ओर उजाला,
दिखता नहीं कहीं अँधियारा।
मन में फिर क्यूँ अंधकार हो,
निर्मल, निश्छल, निर्विकार हो।
हर्षित जन-जन, लगती है
यह जगमग रात निराली।
जग मना रहा दीवाली।

किसी दीन की कुटिया में भी
चलो चलें इक दीप जलाएँ।
हारे, थके, दुखी जीवन में,
आशा की इक जोत जगाएँ।
दे कर के मुस्कान किसी को
सफल करें अपनी दीवाली।
जग मना रहा दीवाली।

Friday, November 9, 2012

वक्त

वक्त

वक्त 
एक ऐसी नदी है,
जिसमें,
सब कुछ बह जाता है।
आदमी,
उसका नाम,
उसके काम,
यहाँ तक कि
सारी कायनात।
बचता है तो सिर्फ़
वक्त।
वही सृजन करता है,
पालता है
और
एक दिन
ले लेता है
अपने आगोश में
सबको।
सुन सको तो सुनो
उसकी आवाज़ ,
पहचान सको तो पहचानो
उसको,
क्योंकि वही है
जीवन का सार,
आद्यन्त हीन।
बाकी सब
उसके खेल खिलौने हैं,
क्षणभंगुर।

अमन कैसे रहे

अमन कैसे रहे

परेशान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।
लगी हो आग तो खुशहाल चमन कैसे रहे।

भूख, गरीबी बेकारी से ,
मँहगाई, बीमारी से ,
सत्ता के भ्रष्टाचारों से ,
ताकतवर के व्यभिचारों से ,
हैरान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।

जहाँ श्रम सीकर का मोल नहीं,
सुनता कोई गरीब के बोल नहीं,
पूँजी के हाथों न्याय बिके,
जाति धर्म में बँटा समाज दिखे,
जहाँ कुंठित हो जन जन का मन, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स , अमन कैसे रहे।

खिलने से पहले ही जहाँ ,
कलियाँ मुरझा जाती हों।
उड़ने से पहले पंछी के
पर काट लिए जाते हों।
जहाँ सपनों को कुचला जाए, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स , अमन कैसे रहे।

Thursday, November 8, 2012

निशि दिन ढूँढ़ूँ चरण तुम्हारे

निशि दिन ढूँढ़ूँ  चरण तुम्हारे

 निशि दिन ढूँढ़ूँ चरण तुम्हारे।
अब तो शरण लो नाथ हमारे।

तेरी इस दुनियाँ में मिलता
है सब कुछ बस प्यार नहीं,
सजा धजा ये मेला मेरे
मतलब का बाज़ार नहीं।
अंतर का एकाकीपन
तेरी अपलक राह निहारे।
आन बसो मोरे प्यारे।

साँसें सीमित, सपने अनगिन,
पूरे नहीं हो पाते,
फँसे भँवर में माया के हम,
ऊब, डूब, उतराते।
काटो मोह, पार करो नैया,
विनती करूँ मैं साँझ सकारे।
अब तो दरस दो नाथ हमारे।

गज़ल - तुम्हें ढूँढ़ते

गज़ल 

तुम्हें ढूँढ़ते हम ज़माने में हारे । 
मिले नाथ आखिर हृदय मे हमारे।

मैं चलता रहा आज तक जिसके दम पर,

वो ताकत तुम्हारी ही रहमत थी प्यारे।

विचारों के, कर्मों के प्रेरक तुम्ही थे,

तुम्हीं से हुए पूरे संकल्प सारे।

रहे साथ चलते, सखा भाव से तुम,

न पहचान पाया, मुकद्दर हमारे।

ये साँसें तुम्हारी अमानत हैं मालिक,

करूँ आज खुद को हवाले तुम्हारे।

मुक्तक

मुक्तक  

(1)
मैं तुझमें फ़ना हो जाऊँ सनम,
ये अंजामे मुहब्बत मेरा हो।
बच रहें निशाँ कुछ क़दमों के ,
जिन्हें देख ज़माना इश्क करे।

(2)

आयी जो तेरी याद तो हम रो लिए कभी,
तेरी नज़दीकियों के एहसास ने कभी मुझको हँसा दिया। 
हैरान हूँ मैं आज खुद अपने ही हाल पर,
तेरे इश्क ने मुझे कैसा दीवाना बना दिया।
    

ओ जाने वाले

ओ जाने वाले

ओ जाने वाले, बार बार मन
तुमको पास बुलाता है।

तुम कहाँ गये कुछ पता नहीं,
आती है कोई सदा नहीं,
हर आहट आस जगाती है, 
नज़रें दर पर टिक जातीं हैं,
अगला पल सूना होता है,
सब कुछ मन का बस धोखा है,
मैं जितना इसको समझाता,
यह और विकल हो जाता है।
ओ जाने वाले, बार बार मन
तुमको पास बुलाता है।

अपने सुख दुख सब साझे थे,
इक दूजे के बिन आधे थे,
कुछ ऐसा घूमा काल चक्र,
इक पलक झपी, तुम बिछुड़ गये।
जीवन की आपा धापी से,
जब भी कुछ वक्त निकलता है,
घेरे लेती है याद तेरी,
मन गुमसुम सा हो जाता है।
ओ जाने वाले, बार बार मन
तुमको पास बुलाता है।

ये कैसा संसार बनाया,
राग द्वेष व्यवहार बनाया,
दूर किया अपने से, उपर
माया का पहरा बैठाया।
अंतहीन ये जिज्ञासाएँ,
अंतहीन ये अभिलाषाएँ,
इनको पूरा करते करते
जीवन सारा चुक जाता है।
ओ जाने वाले, बार बार मन
तुमको पास बुलाता है।


Wednesday, November 7, 2012

गज़ल - बन्धनों से अब मुझे

गज़ल

बन्धनों से अब मुझे उपराम कर मेरे सखा, 
मुक्त हो आकाश में निर्भय विचरना चाहता हूँ।

बाँध कर घुँघरू, जगत की ताल पर नाचा बहुत,
तोड़ सारे बंध अब, प्रिय को रिझाना चाहता हूँ।

गा चुका मैं गीत सारे, पर न भाया कुछ तुम्हें,
मन की वीणा की नयी इक धुन सुनाना चाहता हूँ।

साँस जब तक साथ देगी, मैं लड़ूँगा आँधियों से,
मैं खुदी को बन्दगी का शै बनाना चाहता हूँ।

इतनी ताकत, इतनी हिम्मत, इतनी दौलत दे मुझे,
मैं सभी के ज़ख्म पर मरहम लगाना चाहता हूँ।

इस होली

इस होली 
 

ओ श्याम!
इस होली,
रंग दे मुझको,
अपने रंग में।
ना रहूँ मैं,
ना मेरी कोई पहचान।
हकीकत भी यही है।
मैं तेरी हूँ,
तुझसे हूँ,
मेरा तेरा सम्बन्ध ही
एकमात्र सत्य है।
चिर है।

कविता

कविता

जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।
विरह वेदना व्याकुल होकर,
लिख जाती प्रियतम को पाती।

रोते रोते अँखियाँ सूखीं,
अपलक तेरी राह निहारें।
कौन दिवस लोगे सुधि मोरी,
प्राणों के आधार हमारे।

रुद्ध कंठ कुछ कह ना पाते,
कलम वेदना है लिख जाती।
जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।

Tuesday, November 6, 2012

गज़ल - प्यार की बात करें

 गज़ल 

प्यार की बात करें, नेह की बरसात करें।
गिरा के बीच की सब दीवारें, इन्सानियत की बात करें।

इन्सानी रिश्तों के बीच जमी बर्फ़ तभी पिघलेगी,
खुले दिमाग से मिल बैठ के जब बात करें।

कहो कुछ तुम भी, कुछ हम भी अपनी बात कहें,
रहें कुछ दूर भले, हँस के मुलाकात करें।

खुदा ने बख्शी है हमें नेमत चन्द साँसों की,
गिले शिकवों में न वक्त को बरबाद करें।

गज़ल - मेरी माँ अब भी ज़िन्दा है

  गज़ल
 
मेरी माँ अब भी ज़िन्दा है, भले उसका बदन न हो,
मैं उसके साथ हूँ न हूँ, वो मेरे साथ रहती है।

वही कहता हूँ मैं, जो खुद महसूस करता हूँ,
सदा मैं सुन नहीं सकता, दुआ पर साथ रहती है।

हवा की शक्ल औ‘ सूरत कभी देखी है क्या तुमने,
भले वो दिख नहीं सकती, हमेशा साथ रहती है।

नदी है ज़िन्दगी अपनी, इसे कब बाँध सकते हैं,
समंदर की ये बेटी है, उसी की ओर बहती है।

बयॉँ हो हर खुशी लब से, ये नामुमकिन है,
नशा हो जाए जब उसका, जु़बॉँ चुपचाप रहती है।

अरे नादाँ, कभी उसका शुक्रिया भी कह,
हमेशा तेरे लब पे इक नयी फ़रियाद रहती है।

मैं पथिक

मैं पथिक

मैं पथिक अविरल चरण चलता रहूँ।
रंग में तेरे सदा ढलता रहूँ।

राह दुर्गम हो भले ही प्रेम की
ले तेरा अवलम्ब मैं बढ़ता रहूँ।

नागफनियों की चुभन झेलूँ मगर,
बन सुमन तव पाद तल चढ़ता रहूँ।

साँस में तेरी सुरभि हो, नाम तेरा,
नयन संपुट रूप रस छकता रहूँ।

गज़ल - मैं हर इक तूफान से जम कर लड़ा हूँ

गज़ल

मैं हर इक तूफान से जम कर लड़ा हूँ।
थाम कर मैं वक्त की उँगली खड़ा हूँ।

क्या बिगाडेगा ये जमाना मेरा
अपने मालिक की पनाहों में खड़ा हूँ।

बन उजाला, मैं अँधेरों से लड़ा हूँ,
धार बन, पत्थर हटा, आगे बढ़ा हूँ ,

आग बन मैने जलाया है विकारों को ,
फौलाद बन मैं जुल्म के आगे खड़ा हूँ।

अब न मुझको दूर करना ऐ मेरे बंदा नवाज,
मै तुम्हें पाने को जन्मों तक लड़ा हूँ।

Sunday, November 4, 2012

जाड़े के छंद

जाड़े के छंद

कई दिनों के बाद आज फिर धूप खिली है।
कुहरे की चादर से जग को मुक्‍ति मिली है।
 
बैठे आँगन में सब खायें छान पकौड़ी।
बीच बीच लें चाय की चुस्‍की थोड़ी थोड़ी।
 
बर्फीली पछुआ है सबके हाड़ कँपाती।
दीन, हीन, बूढ़े, बच्‍चों को खूब सताती।
 
कभी कभी सारा दिन बीते, कुहरा छाया रहता है।
सूरज जैसे ओढ़ रजाई, अलसाया सा रहता है।
 
गली, मुहल्‍ले, चौराहों पर जले अलाव हैं।
घेरे बैठे ताप रहे सब हाथ पाँव हैं।
 
नये नये फल औ' सब्‍जी से मंडी पटी हुई है।
क्रिसमस और नये साल की मस्‍ती चढ़ी हुई है।
 
आओ कुछ उनकी भी सुधि लें, जो गरीब, बेघर हैं।
धरती है जिनकी शैया और छत अम्‍बर है।
 
कुछ गर्म वस्‍त्र उनको भी दें, जितनी हो शक्‍ति हमारी।
शीत ऋतु होती है, सब ऋतुओं पर भारी।

मन मुदित नाचे आज है

मन मुदित नाचे आज है

मन मुदित नाचे आज है।
बिन मेघ के बरसात है।
जीवन में जब से आये प्रिय,
गाता हृदय नव राग है।
अब प्रश्‍न है कुछ शेष ना,
दूजा कोई उद्‌देश्‍य ना,
तुम मिल गये, सब मिल गया,
अब शेष है कुछ क्‍लेश ना।
उत्‍फुल्‍ल मन बिन पंख के
अब नापता आकाश है।
मन मुदित नाचे आज है।

दृग देखना तुम्‍हें चाहते,
अधरों पर तेरा नाम है।
मन में भरा अनुराग है,
पुलकित हुआ हर रोम है।
बसिये मेरे मन में सदा
यह आपका आवास है।
मन मुदित नाचे आज है।

बिखरा अधर पर हास है।
मन में भरा उल्‍लास है।
तन वल्‍लरी विचकित परम
हर रोम में मधुमास है।
मधुमास यह चिर हो, सतत हो,
बस इक यही अब साध है।
मन मुदित नाचे आज है।

Saturday, November 3, 2012

गज़ल - आओ मिल बैठ कर

गज़ल

आओ मिल बैठ कर कुछ जि़न्‍दगी की बात करें।
क्‍यूँ न हम आज इक नयी शुरुआत करें।
 
लड़ रहे हैं मुद्‌दत से मगर हुआ न कुछ हासिल,
भुला कर गिले शिकवों को, दोस्‍ती की बात करें।
 
सफ़र में तुम भी हो साहब, सफ़र में हम भी हैं,
हँसी खुशी ये गुज़र जाए, वो करामात करें।
 
सियाह रात है पसरी, नज़र न कुछ आता,
दिया जलाओ तो पहले, फिर सहर की बात करें।
 
हम यहाँ उलझे हैं उन चीजों में, जो अपनी ना हैं,
आओ पहचान करें खुद से, खुद की बात करें।