Friday, June 22, 2012

माँ

माँ

माँ!

मैं तुम्‍हें देख नहीं सकता,
सुन नहीं सकता,
छू भी नहीं सकता,
पर अनुभव कर सकता हूँ।
 
माँ, तुम हो मेरे तन-मन के अणु-अणु में,
मेरी धमनी में बहने वाले
लोहू के कण-कण में,
मेरी मति, गति और वृत्‍ति में।
 
माँ, क्षमा करो अपने प्रति मेरे अपराधों को
जो हुए हों मुझसे,
जाने-अनजाने में,
मन, वचन या कर्म से।
  दो चिर्‌ आशीष।

श्री हरि से है निवेदन,
दें तुम्‍हें शरण
अपने चरण में।
दें दिव्‍य मोक्ष।

श्री विष्‍णवे नमः।
श्री विष्‍णवे नमः।
श्री विष्‍णवे नमः।

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