Friday, June 22, 2012

प्रभु, तुम बिन विश्राम नहीं

प्रभु, तुम बिन विश्राम नहीं

प्रभु, तुम बिन विश्राम नहीं।

मानुस जनम अकारथ कीजो,
आयो किसी के काम नहीं।

पंचभूत तन सब जग जाना,
की निज से पहचान नहीं।

साबुन तेल लगा तन पोसा,
मन के कलुष का भान नहीं।

मन्दिर तीरथ खोजी मूरत,
दी दीन दुखिन्ह मुसकान नहीं।

जग की जगमग में मन रमता,
आवत मुख हरि नाम नहीं।

                   

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