Sunday, November 18, 2012

सागर

सागर
 

रेतीले तट पर खड़ा हुआ,
मैं हतप्रभ सम्मुख देख रहा।
है दृष्टि जहाँ तक जाती दिखता,
नीली लहरों का राज वहाँ।

उस पार उमड़ती लहरों का
आलिंगन करता नभ झुक झुक कर।
रवि बना साक्षी देख रहा
करता किरणों को न्योछावर।

सागर की गहराई कितनी,
कितने मोती, माणिक, जलचर
कितनी लहरें बनती, मिटतीं,
बेला से टकरा टकरा कर।

लहरों की गोदी में खेलें,
नौकाएँ मछुआरों की।
आती जाती लहरें तट का
पद प्रक्षालन कर जातीं।

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