गज़ल
मेरी माँ अब भी ज़िन्दा है, भले उसका बदन न हो,
मैं उसके साथ हूँ न हूँ, वो मेरे साथ रहती है।
वही कहता हूँ मैं, जो खुद महसूस करता हूँ,
सदा मैं सुन नहीं सकता, दुआ पर साथ रहती है।
हवा की शक्ल औ‘ सूरत कभी देखी है क्या तुमने,
भले वो दिख नहीं सकती, हमेशा साथ रहती है।
नदी है ज़िन्दगी अपनी, इसे कब बाँध सकते हैं,
समंदर की ये बेटी है, उसी की ओर बहती है।
बयॉँ हो हर खुशी लब से, ये नामुमकिन है,
नशा हो जाए जब उसका, जु़बॉँ चुपचाप रहती है।
अरे नादाँ, कभी उसका शुक्रिया भी कह,
हमेशा तेरे लब पे इक नयी फ़रियाद रहती है।
मेरी माँ अब भी ज़िन्दा है, भले उसका बदन न हो,
मैं उसके साथ हूँ न हूँ, वो मेरे साथ रहती है।
वही कहता हूँ मैं, जो खुद महसूस करता हूँ,
सदा मैं सुन नहीं सकता, दुआ पर साथ रहती है।
हवा की शक्ल औ‘ सूरत कभी देखी है क्या तुमने,
भले वो दिख नहीं सकती, हमेशा साथ रहती है।
नदी है ज़िन्दगी अपनी, इसे कब बाँध सकते हैं,
समंदर की ये बेटी है, उसी की ओर बहती है।
बयॉँ हो हर खुशी लब से, ये नामुमकिन है,
नशा हो जाए जब उसका, जु़बॉँ चुपचाप रहती है।
अरे नादाँ, कभी उसका शुक्रिया भी कह,
हमेशा तेरे लब पे इक नयी फ़रियाद रहती है।
No comments:
Post a Comment