कविता
जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।
विरह वेदना व्याकुल होकर,
लिख जाती प्रियतम को पाती।
रोते रोते अँखियाँ सूखीं,
अपलक तेरी राह निहारें।
कौन दिवस लोगे सुधि मोरी,
प्राणों के आधार हमारे।
रुद्ध कंठ कुछ कह ना पाते,
कलम वेदना है लिख जाती।
जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।
जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।
विरह वेदना व्याकुल होकर,
लिख जाती प्रियतम को पाती।
रोते रोते अँखियाँ सूखीं,
अपलक तेरी राह निहारें।
कौन दिवस लोगे सुधि मोरी,
प्राणों के आधार हमारे।
रुद्ध कंठ कुछ कह ना पाते,
कलम वेदना है लिख जाती।
जब जब याद तुम्हारी आती,
एक नयी कविता बन जाती।
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