Friday, November 9, 2012

अमन कैसे रहे

अमन कैसे रहे

परेशान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।
लगी हो आग तो खुशहाल चमन कैसे रहे।

भूख, गरीबी बेकारी से ,
मँहगाई, बीमारी से ,
सत्ता के भ्रष्टाचारों से ,
ताकतवर के व्यभिचारों से ,
हैरान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स, अमन कैसे रहे।

जहाँ श्रम सीकर का मोल नहीं,
सुनता कोई गरीब के बोल नहीं,
पूँजी के हाथों न्याय बिके,
जाति धर्म में बँटा समाज दिखे,
जहाँ कुंठित हो जन जन का मन, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स , अमन कैसे रहे।

खिलने से पहले ही जहाँ ,
कलियाँ मुरझा जाती हों।
उड़ने से पहले पंछी के
पर काट लिए जाते हों।
जहाँ सपनों को कुचला जाए, अमन कैसे रहे।
परेशान है हर शख्स , अमन कैसे रहे।

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