गज़ल
आओ मिल बैठ कर कुछ जि़न्दगी की बात करें।
क्यूँ न हम आज इक नयी शुरुआत करें।
लड़ रहे हैं मुद्दत से मगर हुआ न कुछ हासिल,
भुला कर गिले शिकवों को, दोस्ती की बात करें।
सफ़र में तुम भी हो साहब, सफ़र में हम भी हैं,
हँसी खुशी ये गुज़र जाए, वो करामात करें।
सियाह रात है पसरी, नज़र न कुछ आता,
दिया जलाओ तो पहले, फिर सहर की बात करें।
हम यहाँ उलझे हैं उन चीजों में, जो अपनी ना हैं,
आओ पहचान करें खुद से, खुद की बात करें।
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