Thursday, November 8, 2012

गज़ल - तुम्हें ढूँढ़ते

गज़ल 

तुम्हें ढूँढ़ते हम ज़माने में हारे । 
मिले नाथ आखिर हृदय मे हमारे।

मैं चलता रहा आज तक जिसके दम पर,

वो ताकत तुम्हारी ही रहमत थी प्यारे।

विचारों के, कर्मों के प्रेरक तुम्ही थे,

तुम्हीं से हुए पूरे संकल्प सारे।

रहे साथ चलते, सखा भाव से तुम,

न पहचान पाया, मुकद्दर हमारे।

ये साँसें तुम्हारी अमानत हैं मालिक,

करूँ आज खुद को हवाले तुम्हारे।

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