Thursday, November 8, 2012

निशि दिन ढूँढ़ूँ चरण तुम्हारे

निशि दिन ढूँढ़ूँ  चरण तुम्हारे

 निशि दिन ढूँढ़ूँ चरण तुम्हारे।
अब तो शरण लो नाथ हमारे।

तेरी इस दुनियाँ में मिलता
है सब कुछ बस प्यार नहीं,
सजा धजा ये मेला मेरे
मतलब का बाज़ार नहीं।
अंतर का एकाकीपन
तेरी अपलक राह निहारे।
आन बसो मोरे प्यारे।

साँसें सीमित, सपने अनगिन,
पूरे नहीं हो पाते,
फँसे भँवर में माया के हम,
ऊब, डूब, उतराते।
काटो मोह, पार करो नैया,
विनती करूँ मैं साँझ सकारे।
अब तो दरस दो नाथ हमारे।

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