गज़ल
मैं हर इक तूफान से जम कर लड़ा हूँ।
थाम कर मैं वक्त की उँगली खड़ा हूँ।
क्या बिगाडेगा ये जमाना मेरा
अपने मालिक की पनाहों में खड़ा हूँ।
बन उजाला, मैं अँधेरों से लड़ा हूँ,
धार बन, पत्थर हटा, आगे बढ़ा हूँ ,
आग बन मैने जलाया है विकारों को ,
फौलाद बन मैं जुल्म के आगे खड़ा हूँ।
अब न मुझको दूर करना ऐ मेरे बंदा नवाज,
मै तुम्हें पाने को जन्मों तक लड़ा हूँ।
मैं हर इक तूफान से जम कर लड़ा हूँ।
थाम कर मैं वक्त की उँगली खड़ा हूँ।
क्या बिगाडेगा ये जमाना मेरा
अपने मालिक की पनाहों में खड़ा हूँ।
बन उजाला, मैं अँधेरों से लड़ा हूँ,
धार बन, पत्थर हटा, आगे बढ़ा हूँ ,
आग बन मैने जलाया है विकारों को ,
फौलाद बन मैं जुल्म के आगे खड़ा हूँ।
अब न मुझको दूर करना ऐ मेरे बंदा नवाज,
मै तुम्हें पाने को जन्मों तक लड़ा हूँ।
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