Saturday, November 10, 2012

दीवाली

दीवाली

जग मना रहा दीवाली।

सजी हुई है हर घर के
आँगन में दीपों की लडि़याँ।
बच्चों के इक हाथ मिठाई
औ’ दूजे में फूलझडि़याँ।
श्री-गणेश की अगवानी को
है सजी हुई पूजा की थाली।
जग मना रहा दीवाली।

छाया चारों ओर उजाला,
दिखता नहीं कहीं अँधियारा।
मन में फिर क्यूँ अंधकार हो,
निर्मल, निश्छल, निर्विकार हो।
हर्षित जन-जन, लगती है
यह जगमग रात निराली।
जग मना रहा दीवाली।

किसी दीन की कुटिया में भी
चलो चलें इक दीप जलाएँ।
हारे, थके, दुखी जीवन में,
आशा की इक जोत जगाएँ।
दे कर के मुस्कान किसी को
सफल करें अपनी दीवाली।
जग मना रहा दीवाली।

1 comment:

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