हर वक्त गुज़र जाता है
अच्छा बुरा,
जैसा भी है,
हर वक्त गुज़र जाता है।
रात हो
कितनी भी काली,
नव प्रभात आता है।
काट कर
तम की परत,
रवि मुस्कराता है।
दूर नभ में
विहग दल
पर आजमाता है।
कलियों की
पंखुड़ियों ने
सकुचा कर आँखें खोलीं।
गली गली में
गूँज उठी
बच्चों की मीठी बोली।
मन्द शीतल
पवन तन मन
को जगाता है।
आस्था की
स्वर लहरियाँ
कर्ण प्रिय रस घोलतीं।
कर्म पथ की
दीक्षा दे
मुक्ति पथ हैं खोलतीं।
मन्दिरों में
दीप नव
कोई जलाता है।
जैसा भी है,
हर वक्त गुज़र जाता है।
रात हो
कितनी भी काली,
नव प्रभात आता है।
काट कर
तम की परत,
रवि मुस्कराता है।
दूर नभ में
विहग दल
पर आजमाता है।
कलियों की
पंखुड़ियों ने
सकुचा कर आँखें खोलीं।
गली गली में
गूँज उठी
बच्चों की मीठी बोली।
मन्द शीतल
पवन तन मन
को जगाता है।
आस्था की
स्वर लहरियाँ
कर्ण प्रिय रस घोलतीं।
कर्म पथ की
दीक्षा दे
मुक्ति पथ हैं खोलतीं।
मन्दिरों में
दीप नव
कोई जलाता है।
No comments:
Post a Comment