Monday, May 13, 2013

सिंधु लहरें

सिंधु लहरें
 
क्यूँ विकल हैं,
सिंधु लहरें,
खोज में,
अपने किनारों की।

नीली नीली,
वेगवती,
लहरें उठतीं गिरतीं,
उन्मादग्रस्त हो
दौड़ लगातीं,
तट की ओर।
करतीं विलास,
उन्मुक्त हास,
गुंजायमान
चहुँ ओर।

दूर कर
सब विकार,
हो जातीं
श्वेत फेनिल,
चरण धोकर
समा जातीं
हैं किनारों में।

संसार सागर की
लहर हम,
काश! हम भी
खोज पाते,
अपने किनारे को,
मिल पाता
विश्राम। 

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