Thursday, January 17, 2013

गज़ल - मुझसे तुम्हारी दूरी

गज़ल

मुझसे तुम्हारी दूरी जितनी कम हो पायी है।

बस वही मेरी ज़िन्दगी की कमाई है।


क्या कमाया, खर्च किया, बचाया कितना,

तमाम उम्र इसी हिसाब में गँवाई है।


ज़रूरतों का इन्तज़ाम तो कर दिया था उसने,

ये कम्बख्त तबियत मगर, उसमें कब समाई है।


हसरतों की भीड़ में, चुक गयी उम्र तमाम,

याद कर के बता, कभी उसकी याद आई है।


कमाया यहीं से, यहीं पे सब छोड़ दिया,

दुनियाँ की दौलत कभी साथ न जा पाई है।

1 comment:

  1. मुझसे तुम्हारी दूरी जितनी कम हो पायी है।
    बस वही मेरी ज़िन्दगी की कमाई है।
    achha hain mubarak ho

    ReplyDelete