काशी
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
वरुणा-अस्सी मध्य क्षेत्र यह
अविमुक्त, अविनाशी।
विद्या का यह केन्द्र पुरातन,
देता है नित नूतन ज्ञान।
इसकी गलियों में है बसता
इक छोटा सा हिन्दुस्तान।
धर्म जाति का भेद न कोई
यहाँ बसें हर भाषा भाषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
बैठ बुद्ध ने इसी नगर में
दिया विश्व को ज्ञान।
तुलसी, कबीर, रविदास की
कर्मभूमि यह रही महान।
महामना की बगिया अविरल
ज्ञान सुरभि फैलाती।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
इसका लंगड़ा खाये दुनियॉँ,
साड़ी हर नारी की शान।
खा कर पान बनारस वाला
बढ़ती है होठों की शान।
मस्त यहॉँ की जीवन शैली
लोग हास परिहासी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
'हर हर महादेव' का नारा
स्वागत सम्बोधन है इसका।
कंकर कंकर शंकर बसते,
भूखा यहॉँ कोई ना सोता।
पूर्ण हुए इस तपोभूमि में
जिज्ञासु, विद्वान, मनीषी।
गंगा तीरे, शिव त्रिशूल पर,
बसती मेरी नगरी काशी।
प्रभावी !!
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़ )