Saturday, November 23, 2013

मन में जो है, कह लेने दो

मन में जो है, कह लेने दो
 
मन में जो है, कह लेने दो।

छ्न्दों के बन्धन में बँध कर,
शायद मैं कुछ
कह न पाऊँ।
जीवन के पथरीले पथ पर
निर्झर सा मैं बह न पाऊँ।
मन में जो कुछ उमड़ रहा है,
कागज़ पर भी लिख लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

जीवन में सब कुछ है लेकिन
मेरा मन है सदा अकेला।
प्रियतम से बातें करने को
कठिनाई से मिलती बेला।
व्यथा कथा आँसू बन बहती,
रोको मत, बह लेने दो।
मन में जो है, कह लेने दो।

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