Friday, December 20, 2013

मृदु थाप दे कर...

मृदु थाप दे कर...

मृदु थाप दे कर कोई मन के द्वार आया।
फिर नयन के कोर भीगे, ज्वार आया।
उम्र भर मैने तकी थी राह जिसकी,
कल्पना में छवि बनी जिस बाँकपन की,
मेरे अधरों पर बसा था नाम जिसका,
और साँसें कर रहीं थीं आस जिसकी।
आज उसके प्रेम की वर्षा हुई तो
प्राण मन अभिसिक्त हो कर खिलखिलाया।
मृदु थाप दे कर कोई मन के द्वार आया।
फिर नयन के कोर भीगे, ज्वार आया।

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