Sunday, April 21, 2013

चाँद

चाँद

साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।
दूर खड़े
तरु के शिखरों पर
लगा चाँदनी चमकी।

धीरे धीरे पेड़ों के
पीछे से उठा चाँद,
धरती के आँगन में फैला
मद्धिम पीत प्रकाश;
ज्योति किरणों
में धरा
स्नान करती।
साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।

किस प्रेमी की छवि है तेरे
मन पर अंकित,
इस निस्तब्ध निशा बेला में
किसे खोजता तू विचलित;
देख तुझे
उमड़ा करतीं
लहरें सागर की।
साँझ ढली,
धरती पर उतरीं
काली किरणें तम की।

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