Monday, December 16, 2013

युवा मन की अभिलाषा

युवा मन की अभिलाषा
 
पाँव हैं मेरे ज़मीं पर,
किन्तु नज़रें आसमाँ पर,
चाहता हूँ, तोड़ लाऊँ,
मैं सितारे इस धरा पर।

राह भूले तिमिर, झिलमिल,
रश्मियों की वीथियों में।
मन मुदित हो गीत गाये,
नृत्य में पग आप झूमें।

अपनी मेहनत से बनाते,
अपनी किस्मत की लकीरें।
रूक नहीं सकते कदम, हों
लाख ताकतवर जंजीरें।

हम पंछी उन्मुक्त गगन में,
उड़ते जाते हैं।
मन्ज़िल पाने को हम आगे,
बढ़ते जाते हैं।

अपनी नज़रों में न कोई
छोटा बड़ा, हैं सब बराबर।
चाह मेरी, मिले सबको
उन्नति के अवसर बराबर।    

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