Sunday, December 2, 2012

बचपन

बचपन
 

बचपन के दिन,

हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।
माँ की गोदी,
थपकी, लोरी,
प्यारी, मीठी बातें।

बाबूजी वटवृक्ष

घना साया था
उनका।
उसके नीचे
पलते थे हम,
सुखी कुटुम्ब था अपना।
याद अभी भी है उनका
अनुशासन,
उनकी बातें।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।

संगी साथी,

दिन भर मस्ती,
खेल खिलौने मिट्टी के।
कैरम, लूडो,
लुका छिपी,
छत पर गुड्डी भाक्कटे।
बीच बीच में
भूख लगे तो
घर आ रोटी खाते।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।

तन मन चंचल,

ना कोई चिन्ता,
भोला भाला जीवन।
जाने कहाँ
लुप्त हो गया,
जब से आया यौवन।
अब तो छत पर
काटा करते,
तारे गिन गिन रातें।
बचपन के दिन,
हँसते पल छिन,
याद बहुत हैं आते।

2 comments: