Thursday, December 6, 2012

अक्सर ही ऐसा होता है

अक्सर ही ऐसा होता है

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

दृष्टि हमारी सम्मुख देखे,

भीतर की कुछ थाह मिले ना,

हँसने और हँसाने वाला,

मन ही मन में क्यूँ रोता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

दिखता चेहरा एक सलोना,

बातें मधु औ’ मिश्री सी,

पर भीतर ही भीतर मन में

विष बेल बोता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


गम को भुलाने की खातिर

वो बैठा है मयखाने में,

मय उसको पीती है, मूरख

समझे मय को पीता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


जिनकी खातिर जीवन बीता

आज वही ना पहचाने हैं,

बच्चों को भरने में खुद का

जीवन रीता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।


सीमित अपनी शक्ति,

समझ न पाये उस असीम को,

अपने अपने कर्मों का फल

सबको देता रहता है।

अक्सर ही ऐसा होता है,

जो दिखता है, ना होता है।

No comments:

Post a Comment