Friday, December 14, 2012

अपनी सीमाओं को हमने

अपनी सीमाओं को हमने
 
अपनी सीमाओं को हमने

अपना हथियार बनाया है।
 
जग हँसा हमारी नियति देख,

कुछ देर कदम भी ठिठक गये,
फिर सोचा, समझा, बढ़े कदम,
कुछ दूर चले, फिर भटक गये।
अपनी नाकामी से भी हमने,
कुछ सीखा है, कुछ पाया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।
 
अपनी कमियों को समझा,

अपनी क्षमताओं को परखा,
फिर तय की अपनी मंजिल खुद,
दृढ़ता से कदम उधर रखा।
मंजिल फिर कैसे ना मिलती,
जब सिर पर प्रभु का साया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।
 
जग में है कोई पूर्ण नहीं,

सबकी अपनी सीमाएँ हैं,
फिर देख किसी की उपलब्धि
मन क्यों ललचाए, अकुलाए है।
रख नजर क्षितिज पर, जहाँ अभी तक 
कोई पहुँच ना पाया है।
अपनी सीमाओं को हमने
अपना हथियार बनाया है।

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