Wednesday, December 3, 2014

धूप

धूप

धूप धरा पर उतरी,
जैसे
जीवन उतरा।

पशु, पक्षी, मानव सब निकले,
अपने अपने गेह से,
सूरज की किरणें मिलतीं हैं,
सबसे अतिशय स्नेह से।
थमी ओस की बारिश,
घटा,
शीत का पहरा।
धूप धरा पर उतरी,
जैसे,
जीवन उतरा।

बीज अंकुरित हुए ज़मीं में
जीवन नया बसाया,
पुरुष प्रकृति का मिलन सुहाना
सबके मन को भाया।
कोयल नाच उठी उपवन में
बाँध शीश पर सहरा।
धूप धरा पर उतरी
जैसे

जीवन उतरा।

No comments:

Post a Comment