Monday, December 17, 2012

कर्म

  कर्म

यह जग कर्म प्रधान।

कर्मवीर वसुधा को भोगे,
अकर्मण्य किस्मत को कोसे।
श्रम कर, व्यर्थ गवाँ न जीवन,
किस्मत लिख तू अपने कर से।
तुम बुद्धिमान, बलवान, विवेकी,
लक्ष्य करो अपना संधान।
यह जग कर्म प्रधान।

अपने-अपने कर्मों में रत
कुदरत के अवयव सारे,
सूर्य-ऊर्जा, धरा-अन्न,
जल-जीवन, श्वाँस-पवन दे।
तिनका-तिनका जोड़े पक्षी,
तब पाये विश्राम।
यह जग कर्म प्रधान।

शुभ कर्मों के बल पर जग में
राम-राज्य आ सकता है।
जन-जन का दुख हर, धरती को 
स्वर्ग बना सकता है।
बता गये कृष्ण गीता में
कर्म करो निष्काम।
यह जग कर्म प्रधान।

संचित कर्म फलित होते हैं,
भाग्य मनुज का बनता है।
सुख पाता संसार में आ,
या नित्य कष्ट सहता है।
कर्म बनाये मित्र-शत्रु
औ’ मिले मान-अपमान।
यह जग कर्म प्रधान।

जग से खाली हाथ चले जब,
कर्म साथ रहते हैं।
दुनियॉ वाले भले-बुरे
कर्मों को जाँचा करते हैं।
कर्म दिलाये स्वर्ग-नरक
औ’ कर्म मिलाये राम।
यह जग कर्म प्रधान।

2 comments:

  1. बहुत अच्छा सन्देश देती कविता.आशा है हर एक तक यह सन्देश पहुंचे.

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