Thursday, December 29, 2016

दोहे

दोहे
धूप न निकली आज भी, गये कई दिन बीत।
सर्द हवा भीतर घुसे, छेद देह की भीत।
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सर्द हवाएँ तीर सी, बींध रहीं हैं देह।
सूरज की किरणें भली, बरसाती हैं नेह।
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अलसायी सी धूप है, सूरज है हैरान।
कोहरे के आतंक से, सहमी उसकी जान।


 

1 comment:

  1. बहुत खूब ... धुप की जान भी सूखी हुयी है ... अच्छे दोहे ...
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

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