प्रदूषण
साँस संभल कर लेना अब तो हवा विषैली है।
मिट्टी पानी ने यह दुर्गति पहले झेली है।
हुई कुपोषित है थाली की दाल, भात, तरकारी,
कैसे तन को पोषण दें हम, दिखती है लाचारी।
अब सुनते हैं सुबह टहलना, रोगों को न्योता है,
बोतल बन्द नीर का धन्धा, चोखा होता है।
भोगवाद की आँधी में, आशा की किरण भी धुँधली है।
साँस संभल कर लेना अब तो हवा विषैली है।
-- अनुराग
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